आपके जन्म नक्षत्र का शरीर और रोगों सम्बन्ध - Tarot Duniya

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Monday, June 27, 2022

आपके जन्म नक्षत्र का शरीर और रोगों सम्बन्ध


नक्षत्रो का हमारे शरीर और रोगों से सम्बन्ध 

नमस्कार 

आज हम नक्षत्रों का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके बारे में जानेगे| 

पुराने समय में भारत सभ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में बहुत ही समृद्ध और विकसित देश था ऋषियों ने अपने दिव्य ज्ञान और योगजन्य शक्ति से ग्रहों और नक्षत्रों के संबंध में बहुत कुछ जान लिया था। प्राचीन ऋषि अपने दिव्य नेत्रों से ग्रह और नक्षत्रों से राशि नक्षत्र, तारा समूह, सूर्य, चंद्र,मंगल आदि ग्रहों की गति, स्थिति और संचार आदि को देखकर योग आदि के बल से अपने शरीरगत चेष्टाओ से तुलना कर मनुष्य जीवन के बाहरी क्रियाकलापों और आंतरिक प्रवृत्तियों, गुण, स्वभाव और उनके द्वारा होने वाले शुभ और अशुभ फलों का निरूपण करते थे। ज्योतिष का ज्ञान उन्हें वैदिक काल में ही था परंतु उसकी अभिव्यक्ति विभिन्न शाखाओं और साहित्य के रूप में बार-बार कालांतर में भी हुई है। हजारों वर्ष पहले जब सामान्य मनुष्य ने अत्याधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों की कल्पना भी नहीं की थी। तब दिव्य दृष्टि प्राप्त हमारे ऋषियों ने "या ब्रह्मांडे सा पिण्डे" के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए ब्रह्मांड और पिंड में नर और नारायण में तथा पुरुष और प्रकृति के मध्य तादात्म्य होने का महासूत्र संसार को दिया। इसी महा सूत्र को ध्यान में रखते हुए ऋषियों ने अपने दिव्य चक्षु से समस्त ग्रह नक्षत्रों की रश्मियों का प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभाव का सूक्ष्म निरीक्षण किया। 
ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों, 12 राशियों, नौ ग्रहों आदि के द्वारा अनिष्ट रोगों के संबंध में बहुत से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। काल पुरुष के विभिन्न अंगों को नियंत्रित और निर्देशित करने वाली राशियों, नक्षत्रों, ग्रहों आदि की स्थिति के आधार पर हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। किसी जातक की जन्मपत्री में स्थित राशि, नक्षत्र, ग्रह आदि शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस ग्रह नक्षत्र आदि का अशुभ प्रभाव होता है। उससे संबंधित शरीर के अंग पर रोगों का प्रवाह रह सकता है। इस संबंध में चंद्रमा के अंश और जन्म नक्षत्र के आधार पर निकाली गई विशोंतरी, योगिनी आदि दशा और गोचर ग्रहों की वर्तमान ग्रह स्थिति का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है।




ग्रह नक्षत्र मानव के सुख-दुख, लाभ-हानि, उन्नति-अवनति, मान-अपमान, रोग, कष्ट, संपत्ति-विपत्ति आदि का कारण नहीं होते बल्कि यह सूचक होते हैं।
"फलानि ग्रह संचारेण सूच्यन्ति मनीषिणः । को वक्तः तारतम्यस्य वेधसं विना ॥”
मनुष्य ने जो भी शुभ अशुभ कर्म पिछले जन्म में किए होते हैं, जन्म कुंडली में ग्रह है, उन्हीं कर्मों और उनकी प्रवृत्तियों के अनुसार राशियों और भावों की विभिन्न स्थितियों में बैठकर भविष्यफल की सूचना देते हैं। प्राणियों के ज्यादातर रोग पाप कर्म के फल स्वरुप ही होते हैं।
"जन्मान्तर कृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते । तत् शान्तिरोषधैदानं, जपं होमं कृतादिभिः ॥”

चरक संहिता और धर्म शास्त्रों के अनुसार मनुष्य तथा उसके माता-पिता द्वारा इस जन्म में और पिछले जन्म में किए गए पाप कर्म अथवा अज्ञानतावश की गई असावधानियां ही व्याधि के रूप में सामने आती हैं।

"धी, धृति, स्मृति विभृष्टः कर्म यत्ऽशुभम् । प्रज्ञापराधं तं विद्यात् सर्वदोष प्रकोपणम् ॥”

सब प्रकार के रोगों की शांति जप, तप, उचित औषधि, यज्ञ, दान और शुभ कर्मों के द्वारा होती है।

रामायण काल और महाभारत काल में भी ग्रह नक्षत्रों का मानव के जीवन पर प्रभाव पड़ने के अनेक प्रसंग मिलते हैं जैसे रामायण में श्री राम के वनवास जाने से पहले दशरथ ने कहा था कि "अंगारक अर्थात मंगल मेरे नक्षत्र को पीड़ित कर रहा है।" 
महाभारत में भी श्री कष्ण जब कर्ण के साथ भेंट करने जाते हैं तब कर्ण ने ग्रह स्थिति का वर्णन करते हुए कहा था कि "शनि रोहिणी नक्षत्र में स्थित मंगल को पीड़ित कर रहा है।"

यजुर्वेद की तैतिरीय संहिता में 27 नक्षत्रों का वर्णन मिलता है। वर्णन कृतिका नक्षत्र से प्रारंभ होता है। परंतु कालांतर में अश्विनी नक्षत्र से आरंभ हुआ है। चन्द्रमा को  27 नक्षत्रों और पृथ्वी का भ्रमण करने में 27.3 दिन लगते हैं अर्थात 1 दिन में लगभग 1 नक्षत्र को पार कर लेता है। मेष राशि अश्विनी नक्षत्र के 0° अंश से आरंभ होती है। 

प्राचीन वैदिक काल से ही नक्षत्रों और भारतीय जीवन पद्धति का अभिन्न संबंध रहा है। गर्भाधान से लेकर नामकरण, मुंडन, विवाह, अंत्येष्टि आदि सभी 16 संस्कार तथा जीवन के अन्य सभी महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्रों में नक्षत्रों और मुहूर्त का समावेश स्वीकारा गया है। हमारे ऋषियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जैसे - भूमि, क्रय, विक्रय, गृह निर्माण, गृह प्रवेश, यात्रा, व्यापार आरंभ या विद्यारंभ, गुरु धारण करना, पाठ, जप, मंत्र, दीक्षा, यज्ञ, हवन आदि सभी धार्मिक अनुष्ठानों, देव प्रतिष्ठा, वशीकरण, औषधि सेवन आदि सभी क्षेत्रों में नक्षत्र के आधार पर शुभ मुहुर्त को ग्रहण करने के लिए विशेष बल दिया है।
ज्योतिषाचार्य ने कालपुरुष में एक महाकाल पुरुष की कल्पना की है। जिस के विभिन्न अंगों में 27 नक्षत्र और 12 राशियों की कल्पना की गई है। जन्मकालीन किसी व्यक्ति का जन्म नक्षत्र या नाम नक्षत्र जब जन्म समय अथवा वर्तमान गोचर किसी पापी ग्रह से पीड़ित हो किसी पापी ग्रह की दृष्टि हो तो तब उस नक्षत्र और भाव से संबंधित शरीर के अंग में रोग या पीड़ा होती है। यदि शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट होता है तो नक्षत्र अधिष्ठता शरीर का वह भाग पुष्ट होता है। कालपुरुष में नक्षत्रों का गणना कृतिका नक्षत्र से किया जाता है।

अंगों में नक्षत्रों की स्थिति 

कृतिका                                  सिर में
    रोहिणी                                  मस्तक में
          मृगशिरा                                दोनो भोहों में
   आद्रा                                     आंखों में
  पुनर्वसु                                   नाक में
   पुष्य                                       चेहरे में 
  अश्लेषा                                  कानों में
                  मघा                                      होठों और ठोडी में
            पूर्वाफाल्गुनी                           दाहिने हाथ में 
        उत्तराफाल्गुनी                        बाएं हाथ में
         हस्त                                      अंगुलियों में 
   चित्रा                                      गर्दन में 
    स्वाति                                     छाती में 
   विशाखा                                 ह्रदय में 
  अनुराधा                                 उदर में 
         जेष्ठा                                       अमाशय में 
     मूला                                       कोख में 
  पूर्वाषाढ़ा                                 पीठ में
   उत्तराषाढ़ा                               रीड में 
     श्रवण                                      कमर में 
   धनिष्ठा                                    गुदा में 
                शतभिषा                                दाहिनी जांघ में 
          पूर्वाभाद्रपद                             बाईं जांघ में 
           उत्तराभाद्रपद                           पिंडलियों में  
        रेवती                                      टखनों में 
                       अश्विनी                                   पैरों का ऊपरी भाग 
                 भरनी                                     पैरों के तलवों में

इसके अलावा अभिजीत नामक 28 वा नक्षत्र भी होता है| जिसकी गणना उत्तराषाढ़ा की 15 घड़ियों और श्रवण नक्षत्र की शुरुआती चार घड़ियों को लेकर की जाती है | मुहूर्त आदि कार्यों में इसे बहुत शुभ माना जाता है| पर अभिजीत नक्षत्र इक्लिप्टिक से बाहरी पड़ने के कारण चंद्रमा जब भ्रमण करता है तो चंद्रमा के मार्ग में पड़ने वाले 27 नक्षत्रों में इसकी गिनती नहीं की जाती। 

अगले आर्टिकल में 27 नक्षत्रों से संबंधित विशेष रोगों के बारे में जानकारी दी जाएगी|

धन्यवाद ! 


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