श्राद्ध सितम्बर 2022 की सही विधि, पितृ दोष के लक्षण और उनके उपाय - Tarot Duniya

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Sunday, September 12, 2021

श्राद्ध सितम्बर 2022 की सही विधि, पितृ दोष के लक्षण और उनके उपाय

 

सितम्बर 2022 में पितृपक्ष की तिथि, श्राद्ध करने की सही विधि, पितृ दोष के लक्षण और उपाय   

नमस्कार 

आज हम बात करेंगे श्राद्ध के समय में पितरों को खुश कैसे करें|

पितृ पक्ष वह समय होता है जब हम पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान, तर्पण, पूजा-पाठ, पिंडदान करते है और उनका आशीर्वाद पाते है| पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराया जाता है कहा जाता है की कौवे के माध्यम से भोजन पितरों तक पहूँचता है|

पितृपक्ष में कोई भी शुभ कार्य नही किया जाना वर्जित है| परन्तु यदि आपकी जनम कुंडली में पितृ दोष है तो पितृपक्ष का समय आपके लिए बहुत ही लाभ पहुँचाने वाला है | 

श्राद्ध 10 सितम्बर 2022 शनिवार के दिन से आरम्भ हो कर 25 सितम्बर 2022 तक पितृ पक्ष का समापन होगा|

10 सितम्बर – पूर्णिमा का श्राद्ध / प्रतिपदा

11 सितम्बर - द्वितीया 

12 सितम्बर - तृतीया

13 सितम्बर - चतुर्थी

 1सितम्बर - पंचमी 

15 सितम्बर - षष्ठी 

16 सितम्बर - सप्तमी  

18 सितम्बर - अष्टमी 

19 सितम्बर - नवमी 

20 सितम्बर - दशमी 

21 सितम्बर - एकादशी 

22 सितम्बर - द्वादशी 

23 सितम्बर - त्रयोदशी 

24 सितम्बर - चतुर्दशी 

25 सितम्बर - अमावस्या/ सर्व पितर श्राद्ध




 

 पितृ दोष क्या है?

पितृ दोष किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में जन्म से ही होता है| पितृ दोष किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में व्यक्ति के पूर्वजों के पिछले बुरे कर्मों के हिसाब से निर्धारित होता है| पितृ दोष तब तक रहता है जब तक की कर्म ऋणों को पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति द्वारा अच्छे कर्मो द्वारा बुरे कर्मो को समाप्त न किया जाए|  

  श्राद्ध के समय में किये गए उपायों से पितरों को खुश किया जा सकता है| पितृ दोष को दूर करने के लिए भी श्राद्ध का समय उपयुक्त माना गया है| आप बिना कुंडली दिखाए भी जान सकते है कि आप पितृ दोष से पीड़ित है या नही|

लक्षण :-  1.  पितृ दोष के कारण व्यक्ति का जीवन अत्यंत दुखदायी हो जाता है|

2. धन अभाव, मानसिक क्लेश, उन्नति में बाधा का सामना करना पडता है|

3. जीवन और चेहरा निष्तेज होगा|

4. घर में नकारात्मकता महसूस होगी आनंद नही होगा| घर कितना भी सुन्दर बना हो परन्तु ऐसे घर में तेज़ नही होता|

5. बातों में भी नकारात्मकता होगी|

6. घर बीमारियों से घिरा रहेगा|

7. संतान सुख आसानी से नही मिलता| वंश नही बढ़ पता| परिवार छोटा होता चला जाता है|

8. सदस्य किसी भी कार्य में एक दुसरे से सहमत नही होगे| मुखिया सही फैसला नही ले पाता|

9. सदस्यों में मनमुटाव की स्थिति रहती है| थोड़ी देर साथ बैठने से ही लडाई झगडे शुरू हो जाते है|

10. विवाह समय पर नही होता| घर में मंगल कार्य नही हो पाते|

11. पशु पक्षी भी आसानी से नही ठहरते या बीमार रहते है|

12. यदि किसी के घर में एक कमरे की पांच दीवारे है तो ऐसा व्यक्ति भी पितृ दोष से पीड़ित है|

13. एक कमरे में चार दरवाजे होगे ऐसा परिवार भी पितृ दोष से पीड़ित रहता है|

14 . अदृश्य शक्तियों के कारण परेशानी| 

 

यहाँ हम आपको पितृ दोष दूर करने के कुछ उपाय बता रहे है| परन्तु यह उपाय एक या दो बार करने से ही लाभ नही मिल जाता इन उपायों को जीवनपर्यंत किया जाता है|

 

उपाय:- 1. गुरुवार और शनिवार को कुष्ठ रोगियों को भोजन कराये|

2. अमावस्या के दिन नदी में स्नान करें|

3. सीढियों के निचे स्टोर रूम न बनाये|

4. गाय, कुत्ते, कौए का ग्रास हमेशा निकाले|

5. घर की छत्त पर कोई बेकार का सामान न रखे| छत पर बेकार का सामान रखने से दिमाग पर दबाव पडता है और पितृ दोष भी लगता है|

6. अपने स्वर्गीय परिजनों की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराये| स्वर्गीय परिजन के पसंद की एक चीज़ अवश्य बनाये|

7. सामर्थ्य अनुसार वस्त्र, अन्न दान करें|

8. ब्रहम स्थान में गन्दा पानी एकत्रित न होने दे|

9. शिव जी पर 21 आक के पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र चढ़ाये|



10. पिपल के वृक्ष पर सांझ में दक्षिण दिशा की और मुख करके जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाये|

11. गायत्री मंत्र का जाप करें|  

12 . पितृपक्ष के इस समय में आप अपने पितरों के निमित्त पिंडदान करवाए यदि सामर्थ्य हो तो काशी, गया, पेहोवा(कुरुक्षेत्र), फल्गु तीर्थ पर पिंडदान कराये|

13 . गीता का पाठ करें या किसी ब्राह्मण से कराए। यदि सामर्थ्य न हो तो गीता के 18वें अध्याय का पाठ करे। 


ध्यान रखने योग्य बाते :- 1. पितरों को अंगूठे से पानी दिया जाता है| ऐसा इस लिए किया जाता है क्यूंकि हमारी हथेली के जिस भाग में अंगूठा होता है उस भाग को पितृ तीर्थ कहा जाता है| इसलिए पितृ तीर्थ द्वारा चढाया गया जल पिंडो तक जाता है जिससे पितृ पूरी तरह से तृप्त होते है और प्रसन्न होते है| 

2 . अनामिका अंगुली में कुशा से बनी अंगूठी पहननी चाहिए| कुशा के अग्र भाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु भगवान और मूल भाग में भगवान शिव का निवास होता है| श्राद्ध करते समय जब कुशा की अंगूठी डाली जाती है तो इससे पितृ पवित्र होते है और पूजा स्वीकार करते है| 

3 . श्राद्ध का कार्य हमेशा कुतुप कल में ही किया जाना चाहिए अर्थात दिन का अपराहन 11:36 से 12:24 का समय कुतुप कल होता है|      

 धन्यवाद ! 

   

   

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