कौन है वास्तु देव? - Tarot Duniya

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Sunday, February 7, 2021

कौन है वास्तु देव?

नमस्कार,

आज हम बात करेंगे कि कौन है वास्तु देव और क्या है इनका कार्य।

आप सभी ने सुना होगा कि भवन निर्माण में वास्तु देवता का बहुत बड़ा महत्व है। तो आइए सबसे पहले हम जानते हैं कि कौन है वास्तु देव या वास्तु पुरुष।
 
जैसा कि शास्त्रों में लिखा है की प्राचीन काल में अंधकासुर नामक दैत्य और भगवान शंकर के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में शंकर जी के शरीर से पसीने की कुछ बूंदे जमीन पर गिरी उन बूंदों से आकाश और पृथ्वी को भयभीत कर देने वाला एक पुरुष प्रकट हुआ। यह पुरुष तुरंत देवताओं को मारने लगा तब सभी देवताओं ने उसे पकड़कर उसका मुंह धरती की ओर दबा दिया उसे शांत करने के लिए ब्रह्मदेव ने उस पुरुष को एक वरदान दिया की सभी शुभ कार्यों में तेरी पूजा होगी। देवताओं ने उस पुरुष पर वास करने का निश्चय किया इसी कारण उस पुरुष का नाम वास्तु पुरुष पड़ा उस महाबली पुरुष को उल्टे मुंह गिरा कर सभी देवताओं ने उस पर वास किया और सभी बुद्धिमान पुरुष उसकी पूजा करते हैं जो व्यक्ति उसकी पूजा नहीं करता उसे समय-समय पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 










वास्तु शास्त्र में आठ दिशाएं होती है:
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, अग्नि, नैर्ऋतय और वायव्य| 

भवन निर्माण के लिए वास्तु देवता प्रमुख देवता माने गए है। वास्तु देवता का मस्तक ईशान कोण और पैर नैर्ऋतय कोण में है। वास्तु पुरुष के पैरों के तलवे एक दूसरे से चिपके हुए हैं। जैसा कि आप चित्र में देख सकते हैं कि हाथों और पैरों के जोड़ आग्नेय और वायव्य कोण में हैं। वास्तु देवता का पूरा वजन नैर्ऋतय कोण में है। नैर्ऋतय कोण में भारी सामान रखना चाहिए। सिर ईशान कोण में होने के कारण हलके वजन वाला समान रखना चाहिए। घर के बिच का भाग पेट है इस कारण इस भाग को खली रखना चाहिए क्यूंकि पेट पर वजन आने से घर में रहने वाला व्यक्ति रोगी होता है| 


वास्तु शास्त्र का उदय:-
वास्तु शास्त्र का उदय और उसकी रचना पंचभूतात्मक सिद्धांत पर आधारित है। जिस तरह हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है उसी तरह एक भवन का निर्माण भी पांच तत्वों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है ताकि उस में रहने वाले लोग सुख से रह सके।यह पांच तत्व या पांच महाभूत पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश है। हमारा ब्रह्मांड भी इन पांच तत्व से बना हुआ है। जिस प्रकार शरीर में इन पांच तत्वों की कमी या अधिकता से व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है। उसी प्रकार भवन में भी इन तत्वों के संतुलित ना होने पर निवास करने वाले को तरह-तरह के दुखों का सामना करना पड़ता है। इन सभी तत्वों का सभी दिशाओं के साथ संतुलन बनाए रखना यह वास्तुशास्त्र का मूल सिद्धांत है| 

इसके अलावा भी कुछ शक्तियां हैं जो भवन निर्माण में सहायक होती हैं। वह शक्तियां है सूर्य की स्थिति, पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति, आभा मंडल की शक्ति, चुंबकीय शक्ति और विद्युत शक्ति। यह सभी भवन निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं मानव को विद्युत चुंबकीय शक्ति प्रभावित करके शुभ या अशुभ फल देती है। यह शक्तियां पृथ्वी एवं मानव पर हमेशा ही अलग-अलग प्रभाव दिखाती हैं। इसीलिए वास्तु शास्त्र हमेशा प्रत्येक स्थान पर एक समान फल नहीं देता ऐसा परिवर्तन मानव के ग्रह, नक्षत्र तथा भौगोलिक अक्षांश में परिवर्तन के कारण होता है। यदि ऐसा न होता तो भवन एक समान ही फल देने वाले होते।
 
पूजाः- 
घर बनाने का कार्य शुरू करने से पहले वास्तु देव की पूजा करना बहुत जरूरी होता है और घर बनाने का कार्य पूरा होने के बाद भी घर में प्रवेश करने से पहलेे वास्तु देव की पूजा करना आवश्यक है। वैसे तो कहा जाता है कि विवाह, पुत्र जन्म या किसी भी शुभ कार्य से पहले वास्तु देव की पूजा करनी चाहिए। वास्तु देव की पूजा से सभी प्रकार केेे दोष दूर होते है। 

अगले ब्लॉग में हम बात करेंगे दिशाओं के अनुसार देवताओं का स्थान

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