जन्म नक्षत्र की राशि, स्वामी, रोग और उपाय - Tarot Duniya

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Thursday, June 30, 2022

जन्म नक्षत्र की राशि, स्वामी, रोग और उपाय



27 नक्षत्रों से संबंधित विशेष रोग

नमस्कार

आज हम आपको बताएंगे कि आपके जन्म नक्षत्र के अनुसार आपको कौन सा रोग पीड़ित करता है और पीड़ा को दूर करने का उपाय क्या है।





1. अश्विनी : अश्विनी नक्षत्र का संबंध मेष राशि और केतु ग्रह के साथ होता है मेष राशि और केतु का यह नक्षत्र अगर पाप ग्रह से पीड़ित या पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति बुखार अनिद्रा वायु रोग फोड़े फुंसी जलन सीरिया पैर पर चोट बुद्धि भ्रम पैरालाइसिस हाई बीपी लो बीपी या शरीर के किसी भाग में बहुत तेज दर्द होने की संभावना होती है यह गंड मूल नक्षत्र होने से पूजा करने योग्य होता है।

अश्विनी नक्षत्र के देवता "अश्विनी कुमार" है।

उपाय :  सम्बन्धित रोग के औषधि सेवन के साथ अपामार्ग के पौधे की जड़ को लाल कपड़े के टुकड़े में लपेटकर बाजू में बांधना चाहिए।

2. भरणी :  भरणी नक्षत्र का संबंध मेष राशि से है और इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। यदि इस नक्षत्र का स्वामी अर्थात शुक्र, पाप ग्रह से पीड़ित हो या पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति शराब जैसी बुराइयों से ग्रस्त, तेज बुखार, माथे और पैर पर चोट, नजला, जुकाम,कफ,  खांसी, शक्ति हीनता, अति कामुकता और काम जन्य गुप्त रोग, पेट के विकार, नेत्र रोग से पीड़ित रहता है।

इस नक्षत्र के देवता "यम" है।

उपाय : औषधि के साथ-साथ आंवले के वृक्ष की पूजा और अगस्त्य पौधे की जड़ लाल कपड़े में लपेटकर बाजू पर बांधे।

3.i. कृतिका : कृतिका नक्षत्र का पहला चरण मेष राशि से संबंधित होता है और नक्षत्र के स्वामी सूर्य कहे जाते हैं। इस नक्षत्र के स्वामी पर अर्थात सूर्य का संबंध पाप ग्रह से या पाप ग्रह की दृष्टि होने पर सिर चकराना, अनिद्रा, शरीर में जलन, ह्रदय रोग, घुटनों में दर्द, गठिया, तेज बुखार, सिर में चोट, नेत्र रोग, फोड़े फुंसी, चेचक, शस्त्रों से अघात या दुर्घटना, हाई बीपी होता है। 

कृतिका नक्षत्र के पहले चरण के देवता "अग्नि" है।
ii. कृतिका : कृतिका नक्षत्र के अंतिम तीन चरणों का संबंध वृषभ राशि से होता है। कृतिका नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव है। जन्म के समय यदि कृतिका नक्षत्र पाप ग्रह से पीड़ित हो तो जातक चेहरे, गर्दन, टॉन्सिल, निचला जबड़ा, अनिद्रा, ह्रदय रोग,  तेज बुखार, दांत दर्द, मसूड़ों की सूजन, नेत्र रोग, फोड़े फुंसी, हाई बीपी आदि रोगों से ग्रस्त रहता है।

उपाय : कपास के पौधे की जड़ लाल कपड़े में लपेटकर बाजू में बांधने से लाभ मिलता है।

4. रोहिणी : रोहिणी नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा है। रोहिणी नक्षत्र का संबंध वृषभ राशि से है। वृषभ राशि के स्वामी शुक्र है। रोहिणी नक्षत्र, नक्षत्र के स्वामी या राशी स्वामी शुक्र के पीड़ित होने पर बुखार, सर दर्द, कुक्षिशूल, गुप्त रोग, स्त्रियों में अनियमित मासिक धर्म, प्रलाप, गले में खराबी, छाती या पांव में दर्द, सर्दी जुकाम, नाक बहना, अंगों में सूजन, सर में चोट आदि रोगों की संभावना होती है। 

रोहिणी नक्षत्र के देवता "ब्रह्मा" है।

उपाय : औषधि सेवन के साथ जामुन के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और अपामार्ग की जड़ बाजू में बांधनी चाहिए।

5.i. मृगशिरा : मृगशिरा नक्षत्र के पहले दो चरण वृषभ राशि से संबंधित होते हैं। राशि स्वामी शुक्र और नक्षत्र के स्वामी मंगल है। यह नक्षत्र पापाक्रांत होने से चेहरे पर मुंहासे, गले में पीड़ा, टॉन्सिल, खांसी, डिप्थीरिया, कब्ज, जुकाम, नेत्र में पीड़ा, मलेरिया, गुप्त रोग की संभावना होती है।

मृगशिरा नक्षत्र के देवता "चंद्रमा" है। 

उपाय : श्री सत्यनारायण का व्रत रखना लाभकारी होता है।
 
ii. मृगशिरा : मृगशिरा नक्षत्र के अन्तिम दो चरण का सम्बन्ध मिथुन राशि से है। मिथुन राशि के स्वामी बुध है। मृगशिर नक्षत्र के स्वामी मंगल है। जन्म समय से यदि मंगल या बुध अशुभ ग्रहों से पीड़ित होते हैं तो वात-पित्त-कफ त्रिदोष, हाई बीपी, लो बीपी, वायु विकार, खांसी, नजला, जुकाम, खुजली, त्वचा रोग, मलेरिया, बुखार, गुप्त रोग आदि की संभावना बनी रहती है। 

उपाय : औषधि के साथ मंत्र पूर्वक जयंती घास लाल कपड़े में लपेटकर बाजू पर बांधे।

6. आर्द्रा : आर्द्रा नक्षत्र के चारों चरण मिथुन राशि के अंतर्गत होने से राशि स्वामी बुध तथा नक्षत्र के स्वामी राहु हैं। यह नक्षत्र पाप ग्रहों से यदि पीड़ित होता है तो व्यक्ति को तेज बुखार, नजला, जुकाम, वात-पित्त-कफ, अनिद्रा, सर घूमना, गले और कान में दर्द, सूखी खांसी, नेत्र रोग, मतिभ्रम, कान के रोग, डिप्थीरिया, पेट में वायु विकार आदि की संभावना रहती है।

आद्रा नक्षत्र के देवता "भगवान शिव" को माना जाता है।

उपाय : हर सोमवार शिव पूजा करे और पीपल की जड़ दोगुनी कर के मंत्र पूर्वक बाजू में बांधना शुभ होता है।

7.i. पुनर्वसु : पुनर्वसु नक्षत्र के पहले तीन चरण मिथुन राशि से संबंधित होते हैं। मिथुन राशि के स्वामी बुध और पुनर्वसु नक्षत्र के स्वामी गुरु है। जन्म से यदि बुध या गुरु ग्रह पाप ग्रह से पीड़ित हो तो कान, नाक, गले, श्वास, गुर्दे, पेट, सिर पीड़ा, पेट में गैस, तेज बुखार जैसे रोग होते हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र के देवता "आदित्य" है।

उपाय : औषधि के साथ सफेद फूल वाले आक की जड़ को रविपुष्य योग में दाईं बाजू में बांधे।

ii. पुनर्वसु : पुनर्वसु नक्षत्र का चौथा चरण कर्क राशि से संबंधित होता है। कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा और पुनर्वसु नक्षत्र के स्वामी गुरु है। यदि चंद्रमा या गुरु पाप ग्रह से पीड़ित हो तो फेफड़े, छाती का ऊपरी भाग, पेट का ऊपरी भाग, गुर्दे, स्तन संबंधी रोग होते हैं।

उपाय : गाय को चारा, रोटी, गुड़ आदि खिलाएं और गोमूत्र का सेवन करें।

8. पुष्य : पुष्य नक्षत्र के चारों चरणों का संबंध कर्क राशि से है। कर्क राशि के स्वामी चंद्र, नक्षत्र के स्वामी शनि और बृहस्पति देव हैं। यदि यह नक्षत्र या नक्षत्र के स्वामी पाप ग्रहों से पीड़ित होते हैं तो व्यक्ति को सांस संबंधी रोग, अल्सर, गैस, पथरी, तेज बुखार, पीलिया, सूखी खांसी, तपेदिक, कैंसर, विटामिन सी की कमी, एक्जिमा, पायरिया, मंदाग्नि जैसे रोगों की संभावना होती है। 

उपाय : औषधि के साथ पीपल वृक्ष की पूजा करें और कुश की जड़ को दाई भुजा में मंत्र पूर्वक बांधना चाहिए। ब्राह्मणों को दान दे।

9. आश्लेषा : अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण कर्क राशि के अंतर्गत आते हैं। कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा और अश्लेषा नक्षत्र के स्वामी बुध है। यह गंड मूल नक्षत्र है। प्रथम चरण में यह शुभ होता है परंतु दूसरे, तीसरे व चौथे चरण पर बालक माता-पिता के लिए कष्टकारी होता है। जन्म समय यदि अश्लेषा नक्षत्र पाप ग्रह से पीड़ित हो तो पेट, वायु विकार, लीवर, पाचन संबंधी रोग, पीलिया, पथरी, दांतों के रोग, सर्दी जुकाम, एलर्जी, हिस्टीरिया, विषैली वस्तुओं और जीवो से हानि तथा विटामिन बी की कमी रहती है।

अश्लेषा नक्षत्र के देवता "नाग" हैं।

उपाय : पटोल की जड़ को बाजू में बांधना शुभ होता है। नाग चंपा वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।

10. मघा : मघा नक्षत्र के चारों चरण सिंह राशि के अंतर्गत आते हैं। सिंह राशि के स्वामी सूर्य तथा मघा नक्षत्र के स्वामी केतु है। जन्म के समय यदि मघा नक्षत्र अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो तो जातक आधे अंग में पीड़ा, सिर पीड़ा, वात विकार, हृदय की धड़कन में वृद्धि, हाई बीपी, फूड प्वाइजनिंग, गुर्दे में विकार, मानसिक विकृति, पीठ में दर्द, शीत जन्य रोग, पितृ दोष के कारण होने वाले मानसिक व शारीरिक विकार होते हैं। यह भी गंड मूल नक्षत्र है। पहला और दूसरा चरण होने से माता-पिता को कष्ट और परेशानी होती है।

मघा नक्षत्र के देवता "आर्यमा नामक पितर" हैं।
उपाय : वट वृक्ष की पूजा, श्राद्ध तर्पण, दान और भृंगराज पौधे की जड़ दाई बाजू में मंत्र पूर्वक बांधनी चाहिए।

11. पूर्वाफाल्गुनी : पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के चारों चरण सिंह राशि के अंतर्गत आते हैं। सिंह राशि के स्वामी सूर्य और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी शुक्र है। जन्म के समय से यदि पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र पीड़ित हो तो हृदय में विकार, सिरदर्द, नेत्र संबंधी रोग, मानसिक व शारीरिक कष्ट, बुखार, खांसी,  पसलियों में दर्द, नाड़ी रोग, ब्लड प्रेशर, क्रॉनिक (Chronic) रोग, स्त्री या विपरित योनि द्वारा पीड़ित, गर्भपात या संतान कष्ट, खून की कमी आदि होने की संभावना रहती है। 

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के देवता "भग" हैं। 

उपाय : औषधि के साथ-साथ भगवती देवी और पलाश वृक्ष की पूजा तथा पलाश के पौधे की जड़ मंत्र पूर्वक बाजू में बांधनी चाहिए।

12.i. उत्तराफाल्गुनी : उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का पहला चरण सिंह राशि से संबंधित होता है। सिंह राशि के स्वामी सूर्य है तथा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी भी सूर्य हैं। जन्म समय से यदि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र पाप ग्रहों से पीड़ित होता है तो सिर में दर्द, दुर्घटना से चोट, बुखार, पीठ दर्द, हाई ब्लड प्रेशर, मानसिक उन्माद, अत्यधिक क्रोध, हृदय पीड़ा, पेट के विकार, उत्तेजना आदि होते हैं। 

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता "आर्यमा (सूर्य के पुजारी)" हैं।

उपाय : सफेद आक की जड़ बाजू में मंत्र पूर्वक बांधनी चाहिए और यथाशक्ति दान करना चाहिए।
ii. उत्तराफाल्गुनी : उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के आखिरी 3 चरण कन्या राशि से संबंधित है। जिसके स्वामी बुध है और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी सूर्य है। जन्म के समय यदि बुध या सूर्य पाप ग्रह से पीड़ित होते है तो व्यक्ति को पेट संबंधी विकार, liver में विकृति, वात पित्त विकार, पित्त ज्वार, गर्दन में सूजन, पीठ में दर्द, ब्लड प्रेशर, त्वचा रोग, मंदाग्नि, नेत्र रोग आदि रहते है। 

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के देवता "अर्यमा" देव हैं। 

उपाय : सफेद आक की जड़ को दाहिनी बाजू में मंत्रपूर्वक शनिवार या मंगलवार के दिन जब उफा नक्षत्र हो बांध ले।

13. हस्त : हस्त नक्षत्र के चारों चरण कन्या राशि के अंतर्गत आते है। कन्या राशि के स्वामी बुध है और हस्त नक्षत्र के स्वामी चन्द्रमा है। जन्म समय में यदि बुध या चन्द्रमा पाप ग्रह से पीड़ित होते है तो डायरिया, अफारा, पेट दर्द, वायु विकार, पाचन क्रिया खराब, आंतो में दर्द, त्वचा रोग, विटामिन बी की कमी, मियादी बुखार, अतिसार, शक्तिहीनता, कमजोरी, हिस्टीरिया, पथरी, डायबिटीज़, मूत्र संबंधित विकार, किडनी में दोष, फेफड़ों और श्वास प्रक्रिया में कष्ट, मानसिक तनाव आदि रहता है।

हस्त नक्षत्र के देवता "सूर्य" है।

उपाय : औषधि सेवन के साथ आक या जावित्री की जड़ बाजू में बांधना चाहिए और रीठे के वृक्ष की पूजा करें।




14.i. चित्रा : चित्रा नक्षत्र के पहले दो चरण कन्या राशि के अंतर्गत आते हैं। कन्या राशि के स्वामी बुध है और चित्रा नक्षत्र के स्वामी मंगल है। यदि चित्रा नक्षत्र जन्म से पाप ग्रह से पीड़ित हो तो जातक तीव्र पीड़ा, अल्सर, पित्त प्रकृति, जल्दी गुस्सा होने वाला स्वभाव, मंदाग्नि, कृमि रोग, पेट के विकार, दिमागी बुखार, किडनी विकार, पथरी, डायबिटीज, गर्भाशय विकार आदि रोगों से ग्रस्त रहता है। 

चित्रा नक्षत्र के अधिपति देव "विश्वकर्मा" है।

उपाय : औषधि सेवन के साथ-साथ असगंध पौधे की जड़ को बाजू में मंत्र पूर्वक बांधना चाहिए।

ii. चित्रा : चित्रा नक्षत्र के अंतिम दो चरण तुला राशि के अंतर्गत आते हैं। तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं और चित्रा नक्षत्र के स्वामी मंगल है। जिस जातक के जन्म से ही शुक्र या मंगल पाप ग्रह पीड़ित होते हैं। उन्हें सिरदर्द, गुर्दे में पथरी, रीढ़ की हड्डी से संबंधित विकार, डायबिटीज, दिमागी बुखार, मूत्राशय संबंधी रोग, प्रमेह, बहुमूत्र सम्बंधी रोग होते है। 

इस नक्षत्र के देवता "विश्वकर्मा" है।

उपाय : औषधि के सेवन के साथ-साथ अश्वगंधा नामक पौधे की जड़ को दाएं बाजू में मंत्र पूर्वक बांधना चाहिए।
15. स्वाती : स्वाति नक्षत्र के चारों चरण तुला राशि के अंतर्गत आते हैं। तुला राशि के स्वामी शुक्र और स्वाति नक्षत्र के स्वामी राहु ग्रह है। यदि जन्म के समय यह नक्षत्र पाप ग्रह से दृष्ट या पाप ग्रह से संबंध हो जाता है तो जातक को प्रमेह, डायबिटीज, किडनी, खुजली, एग्जिमा, त्वचा संबंधी रोग, छाती संबंधी रोग, पीठ दर्द, अफारा, गठिया, हर्निया, एलर्जी, बहुमुत्र, गर्भाशय विकार जैसे रोग होने की संभावना रहती है।

स्वाति नक्षत्र के देवता "पवन" है। 

उपाय : औषधि के सेवन के साथ-साथ जावित्री की जड़ को बाजू के मूल में बांधना चाहिए और गाय और ब्राह्मण को दान  देना चाहिए। "ॐ वायो ये ते सहिस्त्रीणों" इत्यादि मंत्र का 10000 बार जप करना चाहिए।

16.i. विशाखा : विशाखा नक्षत्र के पहले तीन चरण तुला राशि के अंतर्गत आते हैं। तुला राशि के स्वामी शुक्र और विशाखा नक्षत्र के स्वामी गुरु अर्थात बृहस्पति हैं। यदि नक्षत्र के स्वामी या राशि के स्वामी पाप ग्रह से पीड़ित हो तो जातक को मूत्राशय संबंधी रोग जैसे मधुमेह, बहुमूत्र, किडनी और त्वचा रोग, हाई बीपी, लो बीपी, हिस्टीरिया, शारीरिक पीड़ा, हृदय और मानसिक रोग होने की संभावना रहती है। 

विशाखा नक्षत्र के देवता "इंद्राग्नि" है।

उपाय : रोग की शांति के लिए औषधि के साथ गुंजामूल की जड़ बाजू में बांधनी चाहिए और साथ में "ॐ इंद्राग्नि आगत" मंत्र का 10000 बार जाप करना चाहिए।
ii. विशाखा : विशाखा नक्षत्र का चौथा चरण वृश्चिक राशि के अंतर्गत आता है। वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल और विशाखा नक्षत्र के स्वामी गुरु है। यदि मंगल या गुरु पाप ग्रहों से दृष्ट या संबंधित हो तो जातक को गर्भाशय, जन्नेद्रिय, हर्निया, दिमागी बुखार, गुर्दे की पथरी, श्वेत प्रदर, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, ह्रदय संबंधी विकार, पुरुषों में शुक्राणु सम्बंधी और कलिस्ट रोगों का डर रहता है। 

उपाय : रोग की शांति के लिए गुलाब की जड़ बाजू पर बांधनी चाहिए तथा इंद्राग्नि देवता की प्रसन्नता के लिए 10 हजार की संख्या में मंत्र का जाप करना चाहिए या किसी योग्य ब्राह्मण से करवाना चाहिए।

17. अनुराधा : अनुराधा नक्षत्र के चारों चरण वृश्चिक राशि के अंतर्गत आते हैं। वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल और अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि है। यदि मंगल या शनि पाप ग्रहों से संबंधित हो तो जातक को खून की कमी, पेट में विकार, वायु विकार, गर्भाशय शूज, तेज बुखार, सिर दर्द, गठिया, वात पित्त, अधिक देर तक चलने वाले रोग, दुर्घटना से चोट घाव, व्याकुलता, क्रोधी और जिद्दी स्वभाव, अनियमित मासिक धर्म, होता है।

अनुराधा नक्षत्र के देवता " सूर्य"  है।

उपाय : औषधि के सेवन के साथ-साथ गुलाब की जड़ को चौकोर करके भुजा में बांधने और मौलसिरी वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। बीज मंत्र का 10000 बार जाप करना चाहिए।

18. ज्येष्ठा : ज्येष्ठा नक्षत्र के चारों चरण वृश्चिक राशि के अंतर्गत आते हैं। वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल और जेष्ठा नक्षत्र के स्वामी बुध है। जेष्ठा नक्षत्र गंड मूल में आता है। जेष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण और चौथे चरण में माता-पिता और व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के लिए अरिष्टकर होता है। यदि नक्षत्र या स्वामी पाप ग्रहों से ग्रस्त हो तो जातक को वात पित्त रोग का प्रकोप होता है, व्याकुलता, आंतों का विकार, उदर विकार, कंधों में दर्द, खून संबंधी विकार, दाद खाज खुजली, कुष्ठ और त्वचा संबंधी रोग, बवासीर, गुप्त रोग, अतिकामुकता, गर्भाशय संबंधी रोग होने की संभावना होती है। 

ज्येष्ठा नक्षत्र के देवता "इंद्र" हैं। 

उपाय : औषधि के सेवन के साथ-साथ अपामार्ग की जड़ को मंत्र पूर्वक बाजू में धारण करें और इंद्र के बीज मंत्र का 10000 बार जप करें।
19. मूला : मूला नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि के अंतर्गत आते हैं। धनु राशि के स्वामी गुरु और मूला नक्षत्र के स्वामी केतु हैं। यदि जन्म के समय मूला नक्षत्र के स्वामी या राशि स्वामी गुरु पाप ग्रहों से युक्त हो या दृष्ट हो तो जातक को हाई ब्लड प्रेशर या लो ब्लड प्रेशर की शिकायत रहती है। कमर या घुटनों में दर्द, गठिया, पेट में गैस विकार, त्वचा संबंधी रोग, मानसिक तनाव, गुस्सा, त्वचा रोग, फोड़ा फुंसी, कब्ज से उत्पन्न रोग, हिस्टीरिया, मिर्गी, कानों के रोग, स्थूलता, कोख, उत्तेजना, गर्भपात आदि का भय रहता है। 

गंड मूल होने के कारण नक्षत्र का पहला, दूसरा और तीसरा चरण माता-पिता और धन आदि के लिए अशुभ होता है। 

मूला नक्षत्र के देवता "नैऽरति" है।

उपाय : मंदार की जड़ को शुभ मुहूर्त में बाजू में बांधकर "ॐ मातेव पुत्रं" मंत्र का 7000 बार जप करना चाहिए।

20. पूर्वाषाढ़ा : पूर्वाषाढ़ नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि के अंतर्गत आते हैं। धनु राशि के स्वामी गुरु है और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी शुक्र है। गुरु या शुक्र अशुभ और पाप ग्रस्त होने से जातक को रीढ़ की हड्डी से संबंधित, डायबिटीज, पथरी, वात, पित्त, श्लेष्मा और धातु क्षीणता, पेट में गैस, शारीरिक चर्बी, जांघ, नितम्ब, पाचन क्रिया, लीवर, गुप्त रोग जैसे रोग होने की संभावना रहती है। 

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता "जल" हैं। 

उपाय : औषधि सेवन के साथ-साथ वरुण देवता की पूजा करनी चाहिए। सफेद चंदन का उपयोग करना चाहिए। कपास की जड़, चंदन के छींटे लगाकर मंत्र पूर्वक बाजू में धारण करें और 7000 की संख्या में पूर्वाषाढ़ा के बीज मंत्र का पाठ करें।
21.i. उत्तराषाढ़ा : उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के पहले चरण का संबंध धनु राशि से है। धनु राशि के स्वामी गुरु है तथा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी सूर्य है। गुरु या सूर्य पाप ग्रह से पीड़ित होने से जातक को नेत्र रोग, चर्म रोग, सिरदर्द, ह्रदय रोग, मंदाग्नि, व्याकुलता, अतिसार, उदर और मेरुदंड, ब्लड प्रेशर, पक्षाघात (पैरालाइसिस), टाइफाइड, पेट में गैस, गठिया जैसे रोगों का भय रहता है।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता "विश्व" हैं।

उपाय : औषधीय सेवन के साथ साथ गुरुवार या रविवार को मंदार की जड़ तथा कमल पुष्प बाजू में बांधना चाहिए।

ii. उत्तराषाढ़ा : उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम तीन चरण मकर राशि के अंतर्गत आते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि है तथा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी सूर्य हैं। जन्म के समय यदि शनि या सूर्य पापाक्रांत हो तो तेज बुखार,वात पित्त विकार, सिर में दर्द, पाचन प्रक्रिया में विकार, पैरालाइसिस, ब्लड प्रेशर, श्वास रोग,एक्जिमा, चर्म रोग, हड्डियों के जोड़ों में दर्द, नेत्र रोग, स्नायु दुर्बलता, ह्रदय दुर्बलता, मानसिक विकास या रीड की हड्डी से संबंधित रोग होते हैं।

उपाय : जातक को कपास की जड़ कमल की जड़ के पुष्प पति के साथ रविवार के दिन बाजू में मंत्र पूर्वक बांधने चाहिए।

22. श्रवण : श्रवण नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि के अंतर्गत आते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि और श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा है। यदि शनि या चंद्रमा पाप ग्रह से पीड़ित हो तो जातक की कमर में दर्द, मंदाग्नि, स्नायु दुर्बलता, पथरी, थोड़ी सी भी मेहनत करने से थकान, मानसिक थकान, पीलिया, एलर्जी, त्वचा रोग, पाचन शक्ति में कमी, नेत्र रोग, अनिद्रा, कैल्शियम की कमी, खून की कमी, खून में विकार, वात कफ, रीड की हड्डी से संबंधित परेशानियां, पेट संबंधी परेशानियां, ऐसे रोगों की संभावना रहती है।

श्रवण नक्षत्र के देवता "भगवान विष्णु" है।

उपाय : वातावरण में गुग्गल की धूप दें और अपामार्ग की जड़ को चार धुरी कर के बाजू में मंत्र पूर्वक बांधे। भगवान विष्णु के मंत्र का 10000 बार जाप करें। 
23.i. धनिष्ठा : धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम दो चरण का संबंध मकर राशि से है। मकर राशि के स्वामी शनि और धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी मंगल है। जन्म के समय यदि शनि या मंगल पाप ग्रहों से संबंधित हो तो जातक को वात पित्त कफ, ह्रदय रोग, जोड़ों में दर्द, सूखी खांसी, पेट में विकार, दांत में दर्द, नेत्र रोग, दाद खाज खुजली जैसे चर्म रोग, उदर विकार, चिड़चिड़ापन, मिर्गी, मानसिक दुर्बलता, नौकरों से कष्ट, दुर्घटना से चोट, पिशाच पीड़ा, ब्लड प्रेशर, पीलिया, गुप्त रोग, पथरी जैसे रोग होने की संभावना होती है।

ii. धनिष्ठा : धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण का संबंध कुंभ राशि से है। कुंभ राशि के स्वामी शनि तथा धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी मंगल है। चारों चरण के राशि स्वामी और नक्षत्र स्वामी समान है पर फिर भी कुंभ राशि में हाई ब्लड प्रेशर, एलर्जी, सांस संबंधित परेशानियां, घुटनों, एडी, ह्रदय, लीवर, अमाशय, और गुप्त रोग होने की संभावना अधिक होती है। 

धनिष्ठा नक्षत्र के देवता "वसु" है। 

उपाय : भृंगराज की जड़ को बाजू में धारण करें और पीपल के पेड़ की पूजा करें।

24. शतभिषा : शतभिषा नक्षत्र के चारों चरणों का संबंध कुंभ राशि से है। कुंभ राशि के स्वामी शनि तथा शतभिषा नक्षत्र के स्वामी राहु है। नक्षत्र पाप ग्रहों से पीड़ित होने से जातक को अनिद्रा, ब्लड प्रेशर, वायु विकार, पीलिया, पथरी, जोड़ों में दर्द, छाती में दर्द, ह्रदय में दर्द, दुर्घटना से चोट, सांस संबंधी विकार, एक्जिमा, चर्म रोग, पक्षाघात (पैरालाइसिस), नेत्र रोग आदि होने की संभावना होती है। 
शतभिषा नक्षत्र के देवता "वरुण" है।

उपाय : कमल के फूल की नाल की डंडी को नीले वस्त्र में लपेटकर बाजू में मंत्र पूर्वक बांधे और वरुण देव की प्रसन्नता के लिए कमल पुष्प, कपूर, धूप, दीप आदि से वरुण देव की पूजा करें। 

25.i. पूर्वाभाद्रपद : पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले तीन चरण का संबंध कुंभ राशि से है। कुंभ राशि के स्वामी शनि और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी गुरु हैं। यदि जन्म के समय शनि या गुरु पाप ग्रह से पीड़ित हो तो जातक को नेत्र विकार, ह्रदय का फैलाव, स्थूल शरीर, पेट में गैस जैसे रोगों का सामना करना पड़ता है।

ii. पूर्वाभाद्रपद : पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के अंतिम चरण की राशि मीन है। मीन राशि के स्वामी गुरु और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी भी गुरु है। यह नक्षत्र पाप ग्रहों से पीड़ित होने से जातक को मानसिक और नेत्र संबंधी विकार, हृदय की अनियमित गति, लो ब्लड प्रेशर, घुटनों और पैरों में सूजन, कफ संबंधी रोग, पेट में गैस, कानों के रोग, मानसिक दबाव, पथरी, पीलिया, लिवर में खराबी, हार्ट अटैक, बेहोशी, हिस्टीरिया जैसे रोग होने की संभावना रहती है। 
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता "अजैकपाद" है।

उपाय : चांदी की कटोरी में तेल या छाया पात्र का दान करने तथा भृंगराज की जड़ बाजू में बांधने से लाभ मिलता है।

26. उत्तराभाद्रपद : भाद्रपद नक्षत्र का संबंध मीन राशि से है। मीन राशि के स्वामी गुरु तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी शनि है। यह नक्षत्र पाप ग्रहों से पीड़ित होने के कारण जातक को अतिसार रोग, नाक, कान, आंख संबंधी रोग, वात कफ जैसे रोग, हर्निया, पेट में गैस, स्नायु रोग, दातों का टूटना,  दुर्बलता, पथरी, पीलिया, मंदाग्नि, हाथ पैर सुन होना, या पसीना आना और लंबे समय तक चलने वाले रोग, चर्म रोग, ब्लड प्रेशर का अनियमित रहना, हृदय संबंधी, रीढ़ की हड्डी जैसे रोगों की संभावना रहती है। 

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुध्न्य है ।

उपाय : अश्वत्थ या पीपल की जड़ को गंगाजल छिड़क कर मंत्र पूर्वक दाएं बाजू में गुरुवार के दिन धारण करें ।


27. रेवती : रेवती नक्षत्र मीन राशि के अंतर्गत आता है। मीन राशि के स्वामी गुरु तथा रेवती नक्षत्र के स्वामी बुध है। रेवती गंड मूल नक्षत्र है। इसका चौथा चरण माता पिता के लिए शुभ नही माना जाता है। जन्म के समय पापाक्रांत होने से जातक को मंदाग्नि, भ्रमित बुद्धि, निडा कंपन, वात पित्त कफ, खुजली जैसे चर्म रोग, खांसी, कर्ण शूल, पेट में गैस, उदर विकार, आंख कान और नाक संबंधी विकार, पैरों में सूजन, शराब आदि का सेवन जैसी व्याख्या होती हैं। औषधियों से भी रोग उत्पन्न हो जाते है। चित्त में व्याकुलता, एलर्जी, कब्ज, अनिद्रा जैसे रोग होते हैं।

रेवती नक्षत्र के देवता "पूषा" है। 

उपाय: पीपल की जड़ को तीन धूरा करके दाएं बाजू में गंगाजल छिड़क कर मंत्र पूर्वक बांधे और भगवान शिव की पुष्प, चंदन, बेलपत्र, धूप, दीप आदि से पूजन करें और ॐ नमः शिवाय का जप करें।

धन्यवाद ! 

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