वास्तु शास्त्र और ज्योतिष का सम्बन्ध
कुण्डली में मकान का योग
नमस्कार
आज हम आपको बताएंगे वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का क्या सम्बन्ध है।
हम यहां भवन से संबंधित विविध योगों को प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे पाठक फलाफल देखकर स्वयं निर्णय ले सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र में बहुत गहरा और अटूट संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ज्योतिष वेदांग है तो वास्तु उपवेद है अर्थात वास्तु वैदिक ज्योतिष का ही एक अंग है। जिस तरह किसी मनुष्य की जन्म कुंडली के आधार पर उसके बारे में कुछ भी बताया जा सकता है ठीक उसी तरह उसके मकान की संरचना और आंतरिक व्यवस्था देख कर उसमें रहने वाले पूरे परिवार के विषय में बताया जा सकता है। वास्तव में वास्तु शास्त्र पर्यावरण के साथ तालमेल बैठाकर उस में व्याप्त ऊर्जा से लाभ उठाने की एक कला है।
यदि इन दोनों को अलग-अलग देखा जाए तो जीवन विसंगतियों का केंद्र बन जाता है। इसीलिए वास्तु के अध्ययन, मनन व नियम पालन के लिए ज्योतिष के महत्व को समझना भी जरूरी है।
बिना ज्योतिष ज्ञान के वास्तु शास्त्र अधूरा है। एक अच्छे वास्तुशास्त्री को कदम कदम पर ज्योतिष की जरूरत होती है। वास्तु शास्त्र में हर दिशा को एक ग्रह से जोड़ा गया है। हर ग्रह के गुण, धर्म व स्वभाव का ज्ञान होना जरूरी है।
एक जैसे दिखने वाले दो मकानों में रहने वाले 2 परिवारों में अलग-अलग समस्याएं और विरोधी फल देखने को मिला। विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उनके गृह प्रवेश मुहूर्त व जन्मपत्रियों में भिन्नता थी। इसीलिए वास्तु प्राप्ति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नीव खोदने, कुआं खोदने, शिलान्यास, द्वार स्थापना व गृह प्रवेश शादी के मुहूर्त व शुभ अशुभ ज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान होना भी जरूरी है।
जन्मकुंडली में निर्धारित प्रारब्ध और संचित कर्मों को हमें भोगना ही पड़ता है पर अनुकूल वास्तु के द्वारा हम अपनी कठिनाईयों को समाप्त नहीं कर सकते पर कम कर सकते है।
नियम
पहला नियम : भूमि का कारक ग्रह मंगल है जन्म कुंडली के चौथे भाव भूमि और भवन से संबंध रखता है अच्छे भवन की प्राप्ति के लिए कुंडली में केंद्र त्रिकोण भावों में चतुर्थेश का बलवान स्थित होना आवश्यक है।
दूसरा नियम : चतुर्थेश उच्च का, चतुर्थेश मूल त्रिकोण भाव, चतुर्थेश अपने घर में, चतुर्थेश उच्चाभिलाषी, चतुर्थेश मित्र क्षेत्र में, शुभ ग्रहों से युक्त हो या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो निश्चय ही मकान का सुख मिलता है।
तीसरा नियम : जन्म कुंडली में भूमि के कारक ग्रह मंगल की स्थिति मजबूत होना आवश्यक है।
चौथा नियम : मकान के सुख के लिए चौथे भाव या मंगल का ही अध्ययन करना काफी नहीं है। भवन के पूरे सुख के लिए लग्न और लग्नेश का बलवान होना भी जरूरी है।
पांचवा नियम : बना बनाया मकान लेने के लिए जन्मपत्री में चौथे भाव के साथ शनि की स्थिति पर भी विचार किया जाता है।
भवन प्राप्ति हेतु योग
1. स्वअर्जित भवनसुख : लग्न का स्वामी चौथे भाव में और चौथे भाव का स्वामी लग्न में हो तो यह योग बनता है।
2. उत्तम गृह योग : चौथे भाव का स्वामी किसी शुभ ग्रह के साथ युति करके केंद्र या त्रिकोण में हो तो यह योग बनता है।
3. विशाल भवन योग : चौथे भाव में चंद्र और शुक्र हो अथवा चौथे भाव में कोई उच्च राशिगत ग्रह हो, चतुर्थ भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो तो यह योग बनता है।
4. विचित्र गृह योग : चौथे भाव का स्वामी व दशमेश चंद्रमा, शनि से युक्त हो तो यह योग बनता है।
5. विभिन्न प्रकार गृह योग : चौथे भाव के स्वामी में दसवें भाव के स्वामी की युति और शनि और मंगल की युति हो तो यह योग बनता है यह चार ग्रहों की युति का योग है।
6. बहुगृहवास योग : चौथे भाव या चौथे भाव के स्वामी दोनों चर राशि (1,4,6,10) में हो, साथ ही चतुर्थ भाव के स्वामी शुभ ग्रहों से युक्त या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह योग बनता है। ऐसे व्यक्ति मकान बदलते रहते हैं।
चर राशि की जगह स्थिर राशि (2,5,8,11) हो तो जातक के स्थाई मकान होते हैं।
7. बहुगृह योग : चौथे भाव का स्वामी बलवान हो तथा लग्न का स्वामी, चौथे भाव का स्वामी, धन भाव का स्वामी अर्थात दूसरे भाव का स्वामी, इन तीनों में से जितने ग्रह केंद्र या त्रिकोण में हो जातक के उतने ही मकान होते हैं।
8. अचानक गृह प्राप्ति योग : लग्न का स्वामी और चौथे भाव का स्वामी, चौथे भाव में हो तो यह योग बनता है। ऐसे योग में जन्म लेने वाले जातक को अचानक व अधिकतर दूसरों के द्वारा बनाया हुआ घर मिलता है।
9. उत्तम गृह योग : सुख भाव का स्वामी यदि दसवें भाव के स्वामी के साथ केंद्र या त्रिकोण में हो तो उत्तम श्रेणी का मकान मिलता है।
10. भूमि यनादि गृह योग : यदि सुख भाव का स्वामी अपने ही घर में अर्थात सुख भाव में हो और उच्च भाव में हो तो जातक को गृह भूमि, सवारी, खेती, माता आदि से पूरा सुख तथा संगीत विद्या से भी सुख प्राप्त होता है।
11. लग्न का स्वामी और सप्तम भाव के स्वामी को लग्न या चौथे भाव में होना चाहिए और शुभ ग्रहों से दृष्ट होना चाहिए। नौवें भाव के स्वामी को केंद्र में होना चाहिए और चौथे भाव का उच्च, मूल त्रिकोण या अपने घर का होना आवश्यक है।
12. लग्न का स्वामी व चौथे भाव का स्वामी, लग्न में हो तथा चौथे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो मकान का योग बनता है।
13. लग्न का स्वामी व सप्तम भाव का स्वामी, लग्न में हो और चौथे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि या प्रभाव हो तो मकान का योग बनता है।
14. चौथे भाव का स्वामी, मूलत्रिकोण या अपने घर में हो तथा नवम भाव का स्वामी केंद्र में हो तो भी मकान का योग बनता है।
15. यदि मंगल त्रिकोण में हो तो मकान का सुख मिलता है।
16. चौथे भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो।
17. चौथे भाव का स्वामी बलवान हो और लग्नेश से उसका संबंध हो।
18. चौथे भाव पर यदि दो शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो मकान का सुख मिलता है।
19. चौथे भाव के स्वामी व पांचवें भाव के स्वामी में परिवर्तन योग हो तो मकान का योग होता है।
20. चौथे भाव के स्वामी व ग्यारहवें भाव के स्वामी में परिवर्तन योग हो तो भी मकान का सुख मिलता है।
21. लग्नेश, द्वितीयेश और चतुर्थेश जितने शुभ ग्रहों से दृष्ट होंगे, उतने मकान मिलते हैं।
22. केन्द्र और त्रिकोण भाव में बैठे ग्रहों में जितने ग्रह बलवान होंगे, व्यक्ति के पास उतने ही मकान होंगे।
23. चौथे भाव में अकेला शनि बैठा हो तो व्यक्ति को बड़ी उम्र में मकान मिलता है।
24. शनि, मंगल और राहु की युति हो तो व्यक्ति की ब्लैक मनी से संपदा बनती है।
25. सातवें भाव का स्वामी उच्च का हो या सप्तम भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति को पत्नी पक्ष से मकान का लाभ मिलता है।
26. नवें भाव का स्वामी, दुसरे भाव में और दुसरे भाव का स्वामी नवम भाव में परिवर्तन करके बैठे हो तो यह योग बनता है। इस योग के व्यक्ति का भाग्य उदय 12वें वर्ष में होता है और 32 वर्ष के बाद व्यक्ति को वाहन, मकान व नौकर का पूरा सुख प्राप्त होता है।
भवन प्राप्ति के लिए ग्रहों की दशाएं
जैसे ही किसी व्यक्ति को पता चलता है कि उसकी कुंडली में भूमि या भवन का सुख है तो उसका अगला प्रश्न यह होता है कि यह सुख कब मिलेगा
इसके लिए व्यक्ति की दशा, अंतर्दशा को देखना चाहिए। आगे आपको बताया जा रहा है कि किस दशा या अंतर्दशा में व्यक्ति को यह सुख मिल सकता है।
1. जिन ग्रहों के कारण योग बन रहा है उनकी दशा या अंतर्दशा में व्यक्ति को भवन या भूमि प्राप्त होती है।
2. चन्द्रमा की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा होने पर भूमि या भवन का लाभ मिलता है।
3. मंगल की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा होने पर भूमि व भवन का लाभ मिलता है।
4. गुरु की महादशा में गुरु, शनि, शुक्र या मंगल की अंतर्दशा हो तो व्यक्ति भूमि व भवन का सुख प्राप्त करता है।
5. गुरू की महादशा में शनि की अंतर्दशा हो तो व्यक्ति को पुराना मकान मिलता है।
6. चौथे भाव के स्वामी, मंगल या शनि की महादशा या अंतर्दशा में व्यक्ति को मकान का सुख प्राप्त होता है।
धन्यवाद !
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