11th house, वैदिक ज्योतिष में 11वें घर का उद्देश्य क्या है इसे विस्तार से समझाएंगे। सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में, 11वां भाव, - Tarot Duniya

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Friday, June 10, 2022

11th house, वैदिक ज्योतिष में 11वें घर का उद्देश्य क्या है इसे विस्तार से समझाएंगे। सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में, 11वां भाव,

वैदिक ज्योतिष में 11वें घर का उद्देश्य क्या है और क्या आप इसे विस्तार से समझा सकते हैं, सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में?

नमस्कार

वैदिक ज्योतिष में 11वें घर का उद्देश्य क्या है इसे विस्तार से समझाएंगे। सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में

  • कुंडली का ग्यारहवां भाव अर्थात एकादश भाव इसका एक अपना महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि किसी भी इंसान का जीवन सही ढंग से तभी चल सकता है जब व्यक्ति के पास आयु के स्त्रोत अच्छे होंगे। यदि आय अच्छी नहीं होगी तो व्यक्ति का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। एकादश भाव से हम यही जान सकते है।

  • ग्यारहवें भाव से लाभ, आय, बड़े भाई, प्रोफेशनल फ्रेंड्स, लंबी यात्राएं, परिवार का व्यवसाय क्योंकि यह भाव दूसरे भाव जो कि परिवार का होता है उससे दसवां भाव है। दसवां भाव व्यवसाय का होता है या कर्म का होता है तो परिवार का कर्म, व्यवसाय इसी भाव से देखा जा सकता है।
  • चौथे भाव अर्थात मां के स्थान से आठवां भाव होने के कारण 11वें भाव से मां की आयु व मानसिक परेशानियां भी देखी जा सकती हैं।

  • संतान का जीवनसाथी, पार्टनर और दैनिक आय भी इसी भाव से देखी जाती है क्योंकि यह भाव 5वें भाव से सातवां भाव होता है। पांचवा भाव संतान का और सातवां भाव जीवनसाथी का होता है। 5वें से सातवां होने के कारण इस भाव से संतान के जीवनसाथी, पार्टनर और दैनिक आय देखी जाती है।
  • ग्यारहवें भाव से लाभ, आमदनी, आमदनी का प्रकार, गुप्त धन, बड़े भाइयों की संख्या, लाभ, हानि यह सब देखा जाता है।
  • जातक बेईमानी से धन कमाएगा या इमानदारी से, अपने जीवन में आय की दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण व्यक्ति बन सकेगा यह जानकारी भी 11वें भाव से मिलती है।
  • ग्यारहवें भाव का कारक ग्रह गुरु माना जाता है।
  • जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव को त्रिक स्थान भी कहा जाता है।
  • जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव त्रिक स्थान में कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो 5वें भाव का शुभ फल प्राप्त होता है लेकिन वे ग्रह खुद दूषित हो जाते हैं और अपनी शुभता खो देते हैं।
  • यदि त्रिक स्थान में पाप ग्रह बैठा हो तो उस भाव को पापयुक्त बना देते हैं लेकिन खुद शुभता प्राप्त कर लेते हैं और अपनी दशा में जातक को शुभ फल देते हैं।
  • यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी 11वें भाव में ही बैठा हो तो ऐसा ग्रह पाप ग्रह होते हुए भी शुभ फल देता है।
  •  ग्यारहवें भाव को आय स्थान और उसके स्वामी को आयेश कहते हैं।
  • 11वें भाव को अंग्रेजी में 11th house और संस्कृत में एकादश, भुव, आय कहा जाता है।
  • 11वें भाव का फलादेश करने से पहले ग्यारहवें भाव के स्वामी, 11वें भाव पर ग्रहों की दृष्टि, ग्यारहवें भाव के स्वामी के बैठने की राशि, ग्यारहवें भाव के स्वामी पर अन्य ग्रहों की दृष्टियां, 11 वें के स्वामी का अन्य ग्रहों से संबंध, दशा, महादशा और अंतर्दशा।
 ग्यारहवें भाव में राशियों के अनुसार फलादेश 




मेष :   ग्यारहवें भाव में मेष राशि शुभ राशि मानी गयी है। मेष राशि होने से यह पता चलता है कि जातक बहुत  परिश्रमी है। वह आय को बढ़ाने का हर सम्भव प्रयत्न करता रहता है तथा उसकी आय के स्रोत एक से अधिक होते हैं। उसकी बचपन साधारण स्तर का होता है तथा पिता की सम्पत्ति उसे नहीं के बराबर मिलती है। जीवन के 28वें वर्ष के बाद से उसकी आर्थिक स्थिति ठीक होने लगती है। ऐसा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में खुद ही सचेष्ट रहता है। इसके बड़े भाई कम होते हैं तथा उनसे जातक को कोई विशेष लाभ नहीं होता। स्वतंत्र चिन्तन, सही निर्णय लेने की क्षमता एवं अपनी योग्यता के बल पर ही ऐसा जातक प्रगति कर लेता है।



वृषभ : यदि ग्यारहवें भाव में वृषभ राशि हो, तो जातक की जान-पहचान विशिष्ट लोगों से होती है तथा वह अपने से ऊंचे लोगों की संगति में रहता है। स्त्रियों से भी इसे लाभ मिलता है। जीवन के मध्यकाल में आर्थिक दृष्टि से एक मोड़ आता है, जिसके फलस्वरूप जातक उन्नति के उच्च पद पर पहुंच जाता है। आय के मामले में यह पूर्णत: सावधान रहता है तथा आय बढ़ाने के प्रयत्न करता रहता है। ज़रूरत से ज़्यादा परिश्रम करने पर भी वांछित वस्तु प्राप्त नहीं होती। श्रम का मूल्य इसे कम प्राप्त होता है। भाइयों के साथ इसके सम्बन्ध सामान्य ही कहे जा सकते हैं। 



मिथुन : जिसके ग्यारहवें भाव में मिथुन राशि हो, वह निरन्तर श्रम करते रहने पर भी उचित आय प्राप्त नहीं कर पाता। उसकी आय के स्रोत भी सीमित होते हैं तथा धन के लिए उसे पूर्ण संघर्ष करना पड़ता नौकरी की अपेक्षा यह व्यापार में लाभ उठाता है। इसकी आवश्यकता-पूर्ति हो जाती है, परन्तु जो भी कार्य सम्पन्न होता है, उसके बीच में व्यवधान आते ही हैं, फिर वह कार्य पूरा होता है। आर्थिक स्थिति चिन्तनीय कही जा सकती है, परन्तु जीवन के 42वें वर्ष के बाद इसकी आय के कई स्रोत बनते हैं तथा आय अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है। बड़े भाई का सुख साधारण होता है तथा परिवार में इसके विरोधी होते हैं। ऐसा व्यक्ति होशियार, समय को पहचानने वाला एवं सहिष्णु होता है।

कर्क : जिस जातक की कुण्डली के ग्यारहवें भाव में कर्क राशि हो, वह नौकरी में ही प्रगति करता है। भावुक स्वभाव होने के कारण यह अपने सम्बन्धियों एवं परिवार के लिए व्यय करता रहता है, परन्तु यह एक अच्छा मित्र होता है तथा सच्ची मित्रता के लिए सब कुछ बलिदान कर देता है। यद्यपि आय के साधन सीमित होते हैं, तथापि इसका अधिकांश व्यय परिवार, बच्चों की शिक्षा एवं सुरुचिपूर्ण प्रसाधन तथा सजावट पर होता है। यह एक आदर्श गृहस्थ कहा जा सकता है। जीवन में भाग्य इसका साथ देता है तथा इसे लॉटरी से भी धन प्राप्त होता है।ऐसा व्यक्ति दृढ़ निश्चयी एवं अपनी धुन का पक्का होता है।

 

सिंह : जिस जातक की जन्मकुण्डली के ग्यारहवें भाव में सिंह राशि हो, वह प्रत्येक कार्य को करने से पहले वह यही सोचता है कि इस कार्य को करने से मुझे लाभ होगा अथवा नहीं और यदि लाभ होगा भी, तो कितना। नौकरी में उन्नति के अवसर कम होते हैं। इसकी अपेक्षा ऐसा जातक व्यापार में खूब चमकता है और धनवान् बनता है। इसका स्वभाव मृदु होता है, तभी सब प्रकार के लोगों से सभ्यतापूर्ण ढंग से पेश आता है। इसका रहन-सहन सादा होते हुए भी सुरुचिपूर्ण कहा जा सकता है। यह व्यर्थ का व्यय नहीं करता। इसका विश्वास श्रम में होता है व श्रम के बल पर ही यह उन्नति कर लेता है।

कन्या : यदि ग्यारहवें भाव में कन्या राशि हो, तो जातक मेहनती होने के साथ-साथ दूरदर्शी भी होता है। वह जो भी कार्य करता है, उसे खूब सोच-विचारकर करता है। राजनीतिक कार्यों से यह लाभ उठा सकता है तथा इसमें त्वरित निर्णय लेने की शक्ति होती है। आमदनी के स्रोत भी एक से अधिक होते हैं तथा इसकी यही प्रवृत्ति होती है कि चाहे कुछ भी करना पड़े अर्थ-संचय होना ही चाहिए तथा आय बढ़नी चाहिए। जातक को विशेष लाभ नहीं होता, अपितु यह परिवार के लिए पूर्ण समर्पित होता है इसके लिए यह घोर परिश्रम भी करता है। जीवन निर्वाह एवं जीवन की आवश्यकताएं पूरी होती है।

तुला : जिस जातक की जन्मकुण्डली के ग्यारहवें भाव में तुलाराशि होती है, वह धीर, गम्भीर, अवसर की नजाकत को समझने वाला एवं नाजुक क्षणों में अद्भुत प्रतिभा दिखाने वाला होता है। परिवार सज्जन इसके सहायक होते हैं तथा इसकी उन्नति में वे योग भी देते हैं।

वृश्चिक : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में वृश्चिक राशि होती है, वह एक साथ कई कार्य करने में निपुण होता है। भूमि अथवा भूमि सम्बन्धी कार्यों में उसका विशेष व्यय होता है एवं वह कृषि से लाभ उठाता है। सही समय पर सही चोट करने में यह निपुण होता है। ऐसा ही व्यक्ति देश, काल और पात्र को ध्यान में रखकर अपने भावों को व्यक्त करता है।

धनु : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में धनु राशि होती है, वह व्यापार में प्रगति करता है। नौकरी में इस जातक की उन्नति के अवसर कम ही होते हैं। ऑफ़ीसरों एवं उच्चपदस्थ लोगों से इसकी जान-पहचान होती है, जिससे
यह धीरे धीरे  प्रगति करता रहता है। उसकी आमदनी के स्रोत कई होते हैं। उसके जीवन का एक ही ध्येय होता है कि यथासम्भव, आमदनी में विस्तार किया जाये। आय की अपेक्षा व्यय बढ़ा-चढ़ा रहने पर भी यह जीवन में ऐसा सन्तुलन कायम करता है कि इसे अभाव देखना नहीं पड़ता तथा विपत्ति के समय के लिए यह कुछ-न-कुछ बचाकर रखता है। इसकी आवश्यकताएं सीमित होती हैं तथा जीवन में उन आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो जाती है।

मकर : जिस जातक की कुण्डली के ग्यारहवें भाव में मकर राशि हो, वह चंचल प्रवृत्ति का होता है तथा उसका दिमाग अत्यन्त गतिशील रहता है। एक ही बिन्दु पर घण्टों सोचने की उसकी आदत नहीं होती, परन्तु कम समय में ही वह बात की तह तक पहुंच जाता है एवं सही निर्णय लेने की क्षमता रखता है। नौकरी में इस जातक की उन्नति के कई अवसर आते हैं तथा नौकरी में प्रगति भी करता है। आय के जो भी साधन होते हैं, वे ठोस होते हैं तथा स्थायी आमदनी के कारण यह अर्थ-संचय भी कर लेता है। परिवार तथा समाज में लोकप्रिय होता है तथा भाइयों से इसके अच्छे सम्बन्ध रहते हैं। अपने वचनों का पालन करता है तथा जो कुछ भी कहता है, उसे पूरा करने का प्रयत्न करता है। 


कुम्भ : जिस जातक की कुण्डली के ग्यारहवें भाव में कुम्भ राशि होती है, वह अपने सम्मान की रक्षा में वह सचेष्ट रहता है तथा ईमानदारी उसके जीवन का ध्येय रहता है। यद्यपि उसके जीवन में प्रलोभन आते हैं तथा बुरे कार्यों से अनायास धन-प्राप्ति के मौके भी मिलते हैं, तथापि यह अपने आदर्शों से पीछे नहीं होता। यह वही करता है, जो नीतिसम्मत एवं उचित होता है। इनकी बाल्यावस्था ग़रीबी में बीतती है, परन्तु श्रम के बल पर ये उन्नति-पथ पर अग्रसर होकर उच्च पद पर पहुंच जाते हैं। व्यापार की अपेक्षा नौकरी में विशेष लाभ प्राप्त करते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसे जातक सफल होते हैं।

मीन : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में मीन राशि होती है, वह धनवान् होता है तथा जीवन में अपने कार्यों से ख्याति प्राप्त करता है। ऐसे जातक किसी विशिष्ट क्षेत्र में चमकते हैं। प्रसिद्ध गायक, आलोचक अथवा प्रसिद्ध वैज्ञानिक होते हैं। इनके आय के स्रोत स्थायी होते हैं तथा इनकी जीवन की सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। इनका जीवन सीधा-सादा, सात्त्विक एवं उच्च होता है। राजनीतिक तथा सामाजिक क्षेत्र में ये पूर्ण प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। इनके विचार स्वतन्त्र तथा मौलिक होते हैं। इनका जीवन आडम्बर से शून्य तथा सात्त्विक होता है। जीवन में ऐसे व्यक्ति पूर्ण सफल कहे जा सकते हैं।

 ग्यारहवें भाव में ग्रहों का फल 

सूर्य : यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो, तो जातक आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है।वह अपने प्रयत्नों से अर्थ-संचय भी कर लेता है। वह जीवन की आवश्यकताएं भी पूरी कर लेता है और ख्याति एवं लाभ प्राप्त करता है। परिवार से इसके विचारों में भिन्नता रहती है, फिर भी वह जो कहता है, उचित एवं सोच-समझकर ही कहता है। ऐसा जातक सफल वकील अथवा सफल राजनीतिज्ञ होता है। उसके जीवन में अभाव नहीं रहता तथा स्वतन्त्र चिन्तन के कारण वह प्रशंसा प्राप्त करता है।

चन्द्र : ग्यारहवें भाव में बैठकर चन्द्र जातक को अदम्य साहस प्रदान करता है। ऐसा जातक दृढ़निश्चयी एवं अपने हठ के लिए प्रसिद्ध होता है। सूझ-बूझ एवं नेतृत्व करने की इसमें अद्भुत क्षमता होती है तथा यह जो भी कार्य करता है, सोच-विचारकर करता है। शत्रु इसके नाम से श्रीहीन हो जाता है। ऐसा जातक युवावस्था में विख्यात होता है। इसका बचपन साधारण स्तर का ही होता है| यदि ऐसे जातक नौकरी में होते हैं, तो उच्च पदाधिकारी बनते हैं। व्यापार में भी ऐसे जातक लाभ उठाते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसे जातक पूर्ण सफल कहे जा सकते हैं। इनके पास आय के  ठोस साधन होते हैं। फलस्वरूप, जीवन में धन का अभाव नहीं रहता। इनके जीवन की आवश्यकताएं सहज ही पूरी हो जाती हैं तथा ये समाज में कीर्ति अर्जित करते हैं। 

मंगल : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में मंगल होता है, वह अपने पिता का धन नहीं भोग पाता। उसे पैतृक सम्पत्ति नहीं के बराबर मिलती है यदि मंगल अपने घर का होकर ग्यारहवें भाव में हो, कारक ग्रह बन जाता है तथा जातक को लाभ कराता है। ऐसे जातक कठोर परिश्रमी होते हैं। आजीविका के लिए इन्हें घोर श्रम करना पड़ता है उसके बाद इनके पास धन-संचय होने लगता है। आमदनी में स्थायी लाभ होता है। स्वजनों एवं भाइयों की पूरी सहायता करने का इच्छुक रहता है।
बुध : जिस जातक की जन्मकुण्डली के ग्यारहवें भाव में बुध होता है, वह अत्यन्त चतुर एवं परिस्थितियों के अनुकूल कार्य करने वाला होता है। अपनी स्थिति के अनुसार ही यह अपना रहन-सहन रखता है। ऐसा जातक नौकरी में विशेष लाभ नहीं उठा पाता एवं इसकी जितनी योग्यता होती है, उतना फल भी इसे प्राप्त नहीं होता। फलस्वरूप, इसमें थोड़ी हीनभावना भी आ जाती है, परन्तु ऐसे जातक में बहुत साहस एवं दृढ़निश्चय होता है। यह मेहनत को ही सर्वोपरि समझता है तथा निरन्तर मेहनत करता है। मेहनत के बल पर ही यह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है। भाइयों से इसे विशेष लाभ नहीं मिलता और न परिवार ही इसकी उन्नति में सहायक होता है। एक प्रकार से देखा जाये, तो यह सैल्फमेड होता है। उच्चाधिकारियों से इसका विशेष सम्पर्क रहता है। जीवन के मध्यकाल में इसे अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है एवं तभी यह उन्नति के शिखर पर पहुंचता है। इसकी आमदनी के कई स्रोत होते हैं |

बृहस्पति : यदि जातक के ग्यारहवें भाव में बृहस्पति होता है, तो वह अत्यन्त शुभ माना जाता है। ऐसा व्यक्ति शान्त, धीर, गम्भीर एवं कुशल प्रशासक होता है। आर्थिक दृष्टि से ऐसे जातक सम्पन्न होते हैं। उनकी आय के कई स्रोत होते हैं तथा सम्पत्ति की ओर से सचेष्ट रहते हैं। जीवन के मध्यकाल में इन्हें संघर्षों का सामना करना पड़ता है। बाधाओं में इनका व्यक्तित्व निखरता है। निरन्तर मेहनत करते रहना ही इनका स्वभाव होता है। लेखन तथा प्रकाशन के क्षेत्र में भी ये प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं तथा राजकीय पुरस्कार प्राप्त करते हैं। इन्हें भाइयों से विशेष लाभ नहीं मिलता। जीवन में इनको आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है तथा यह सफल कहे जाते हैं।

शुक्र : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में शुक्र होता है, वह मौज-शौक़ से जीवन बिताने वाला होता है। इसके पास आय के कई स्रोत होते हैं, पर व्यय हमेशा बढ़ा-चढ़ा रहता है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती। उच्चशिक्षा में भी बाधाएं आती हैं। नौकरी में ऐसे जातक सफल नहीं कहे जा सकते; क्योंकि अधिकारियों तथा इनमें खींचतान होती रहती है। कपड़ों पर तथा सुगन्धित द्रव्यों पर इनका विशेष ख़र्च होता है। घर की सजावट का तथा कपड़ों की सुरुचि का भी ये विशेष ध्यान रखते हैं। ऐसे जातक शान-शौक़त व तड़क-भड़क से रहने वाले होते हैं। प्रेम के क्षेत्र में ये अग्रणी रहते हैं तथा विशेष व्यय करते देखे जाते हैं। जीवन में ऐसे जातक सफल कहे जाते हैं।


शनि : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में शनि होता है, वह कुशल प्रशासक तथा उच्चपदस्थ अधिकारी होता है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त भव्य होता है तथा समाज में उसका सम्मान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास आय के कई स्रोत होते हैं, जिनसे स्थायी आमदनी होती रहती है। व्यापारिक क्षेत्र में ऐसे जातक चमकते हैं एवं अपने अनुभव तथा युक्तियों के बल पर व्यापार का विस्तार कर सकने में समर्थ होते हैं। परिवार में भी ऐसे व्यक्ति का सम्मान होता है।

राहु : ग्यारहवें भाव में बैठा राहु इस बात का प्रतिक है कि जातक प्रखर प्रतिभासम्पन्न एवं राजनीति में तेज़ है। वह जो भी कार्य करता है, पूरी तरह से सोच-विचारकर करता है तथा एक बार जो निश्चय कर लेता है वह पूरा करता है । परिवार वाले इसकी उन्नति में विशेष सहायक नहीं होते। यह शान-शौक़त से जीवन बिताने का इच्छुक होता है। तथा व्यय करने के मामले में पूरी सावधानी बरतता है।

केतु : जिस जातक के ग्यारहवें भाव में केतु होता है, वह अच्छी स्थिति में होता है। यह नौकरी के क्षेत्र में विशेष प्रगति नहीं पाता इसकी आय के कई स्रोत होते हैं तथा यह जीवन को सुखमय बनाने का प्रयत्न करता है। परन्तु जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं तथा धोखा भी खाना पड़ता है। ऐसा जातक चतुर एवं समय को पहचानने वाला होता है।

धन्यवाद !

वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में  

वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में तीसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में चौथे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में पांचवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में सातवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में  

वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में नवम भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में दसवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में  

 दुसरे भाव से सम्बंधित कुछ योग            

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