वैदिक ज्योतिष में तीसरे घर का उद्देश्य क्या है हम इसे विस्तृत तरीके से समझेगे सभी राशियों, ग्रह और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में
नमस्कार,
आज हम तीसरे भाव का उदेश्य, तीसरे भाव में सभी राशियाँ, तीसरे भाव में किस ग्रह का क्या फल होता है इसके बारे में विस्तार से बात करेंगे|
* तीसरा भाव किसी भी व्यक्ति के पराक्रम को दर्शाता है इस भाग से यह देखा जाता है कि व्यक्ति में जीवन शक्ति कितनी और कैसी है, और वह जीवन में संघर्ष का सामना कर पाएगा या नहीं। नाजुक होगा या चट्टान के समान दृढ़ होगा। इन सब का पता इस भाव से लगाया जा सकता है इसी के साथ छोटे भाई तथा उनसे संबंध और उनका सहयोग कितना प्राप्त होगा यह भी इस भाव के द्वारा देखा जा सकता है।
* कुंडली के तीसरे भाग को आत्मा भी कहा जाता है क्योंकि आत्मा के बिना शरीर मृत है ठीक उसी प्रकार तीसरे भाव के मजबूत ना होने पर जीवन प्राण रहित है। इसीलिए तीसरे भाव का बहुत ही गहराई से अध्ययन करना चाहिए।
* तीसरे भाव का कारक ग्रह मंगल है।
* जन्म कुंडली के तीसरे भाव को त्रिषडाय, उपचय स्थान भी कहा जाता है और इस भाव में बैठे ग्रह को आपोक्लिम ग्रह कहा जाता है।
* परंतु यदि तीसरे भाव में पाप ग्रह बैठा हो तो उस भाव को पाप युक्त बना देता है लेकिन खुद शुभता प्राप्त कर लेता है और अपनी दशा में जातक को शुभ फल भी देता है।
* यदि तीसरे भाव का स्वामी तीसरे भाव में ही बैठा हो तो ऐसा ग्रह पाप ग्रह होते हुए भी शुभ फल ही देता है।
* तीसरे भाव को पराक्रम स्थान व स्वामी को पराक्रमेश कहते है|
* तीसरे भाव को अंग्रेजी में 3rd house और संस्कृत में पराक्रम, वीर्य, धैर्य, दुश्चिक्य नाम से जाना जाता है|
* जातक के छोटे भाई- बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, हिम्मत, व्यापार, उद्यम, मेहनत, साहस, शौर्य, धैर्य, दमा, गुर्दा, खांसी, प्राणायाम, योगाभ्यास, वचन, तत्परता, भतीजे भतीजी, चतुरता, अन्य पारिवारिक संबंध की जानकारी तीसरे भाव से ली जा सकती है।
* तीसरे भाव से अस्थियां, गला, कान, वस्त्र, फल, मूल, औषधि का भी अध्ययन किया जा सकता है।
* तीसरे भाव को पराक्रमेश और तीसरे भाव के स्वामी ग्रह को तृतीयेश कहा जाता हैं।
* तीसरे भाव का फलादेश करने से पहले तीसरे भाव की राशि, तीसरे भाव में बैठे ग्रह, तीसरे भाव पर ग्रहों की दृष्टि, तीसरे भाव का स्वामी अर्थात तृतीयेश जहां बैठा हो, तृतीयेश पर ग्रहों की दृष्टि, तृतीयेश की दृष्टि, कुंडली के कारक और अकारक ग्रह और तीसरे भाव से संबंधित विशेष योग की पूरी जानकारी के बाद ही फलादेश करना चाहिए।
* तीसरे भाव में किस राशि का क्या फल है अब हम उसकी जानकारी आपको देंगे।
राशिनुसार फल:
मेष: जिस व्यक्ति के तीसरे भाव में मेष राशि होती है वह व्यक्ति बल में धनी होता है और मोटी मोटी भुजाओं वाला बलिष्ठ और अत्यधिक बल वाला और अत्यधिक उत्तम साहस वाला व्यक्ति होता है। दूसरों की भलाई करना इसे पसंद होता है। कई प्रकार की कलाएं यह जानता है और धन संचय करने वाला होता है।ऐसा व्यक्ति भुजबल से यश, लाभ प्राप्त करता है।
वृषभ: जिस व्यक्ति के तीसरे भाव में वृषभ राशि होती है ऐसे व्यक्ति नौकरी में उच्च पद प्राप्त करते हैं। परिवार में उनकी प्रशंसा होती है और वह दान पुण्य में आगे रहते हैं। ऐसे व्यक्ति लेखन से भी धन प्राप्त करते हैं। कवि, चित्रकार, कलाकार बनने के साथ-साथ कलाओं में उनकी सहज ही रुचि होती है, और कलाओं के माध्यम से वह लाभ भी प्राप्त करते हैं।
मिथुन: जिस व्यक्ति के तीसरे भाव में मिथुन राशि होती है वह भाग्यशाली होते हैं ऐसे व्यक्तियों को अपने जीवन में उत्तम वाहनों को प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है। उनका परिवारिक जीवन सुखी और प्रसन्नता के साथ व्यतीत होता है, तथा ऐसे व्यक्तियों को उनकी स्त्री से पूरा सहयोग मिलता है। समाज में उनका मान सम्मान बना रहता है और राजकीय सेवा से वह पुरस्कृत होते हैं।
कर्क: जिन जातकों की कुंडली में तीसरे भाव में कर्क राशि होती है ऐसे व्यक्तियों का भाग्य व्यापार के द्वारा उन्नत होता है। ऐसे व्यक्तियों को जीवन में मित्रों का पूरा साथ मिलता है। इनका स्वभाव सरल और सौम्य और कभी-कभी चतुर भी होता है। भूमि संबंधी कार्यों में उन्हें लाभ होता है जैसे प्रॉपर्टी डीलिंग। ये ईश्वर में श्रद्धा रखते हुए भी समाज की रूढ़िवादी सोच को तोड़ने में विश्वास रखते हैं और नए विचारों को बनाते हैं। इनका पारिवारिक जीवन सुख और खुशहाली से व्यतीत होता है।
सिंह: जिनकी कुंडली में तीसरे भाव में सिंह राशि होती है। वह साहस वाले व्यक्ति होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को बाल्यकाल में शिक्षा के लिए जगह-जगह भटकना पड़ता है, पर फिर भी वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं। उनका शरीर स्वस्थ और इमैजिनेशन पावर बहुत अच्छी होती है। ऐसे व्यक्ति कला से प्यार करने वाले, काव्य संगीत आदि में रुचि रखने वाले, लिखने और प्रकाशन जैसे कार्य भी ऐसे व्यक्ति करते हैं इनका पारिवारिक जीवन भी सुखमय व्यतीत होता है।
कन्या: जिनकी कुंडली में तीसरे भाव में कन्या राशि होती है वह शास्त्रों से प्रेम करने वाले, अनुराग रखने वाले और मित्रों में प्रशंसा प्राप्त करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति को संबंधियों से बिल्कुल सहायता नहीं मिलती, बल्कि संपर्क में आने वाले व्यक्ति और मित्र ही उनसे सहायता मांगते हैं। इन व्यक्तियों को शीघ्र क्रोध आ जाता है पर वह क्रोध सही कारण से ही आता है। जितनी जल्दी क्रोध आता है उतनी ही जल्दी क्रोध उतर भी जाता है। इन व्यक्तियों को हीन भावना का शिकार होना पड़ता है।
तुला: इन जातकों के तीसरे भाव में तुला राशि होती है, उन जातकों की संगति अपने से निम्न स्तर के लोगों से होती है। उनका मन स्थिर होता है, और वह किसी भी प्रश्न पर तुरंत निर्णय नहीं लेते। यह बहुत ज्यादा बोलते हैं और बोलते समय इन्हें जगह, समय और व्यक्ति का भी ध्यान नहीं रहता। अनुचित कार्य करने के बाद पछताना इनका स्वभाव होता है। ऐसे व्यक्ति का पारिवारिक जीवन मतभेदों के बीच गुजरता है।
वृश्चिक: जिस व्यक्ति के तीसरे भाव में वृश्चिक राशि होती है। उनकी संगति निम्न स्तर के लोगों से होती है, तथा वह व्यसनों का आदि होता है। ऐसे व्यक्ति को क्रोध भी बहुत जल्दी आता है और क्रोध में अच्छे बुरे का भी ध्यान नहीं रहता। भाइयों से इन्हें कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं होता। इनका पारिवारिक जीवन मध्य स्तर का होता है।
धनु: जिन व्यक्तियों के तीसरे भाव में धनु राशि होती है, वे शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ बलवान और सुंदर होते हैं। इनका चेहरा सुंदर और मस्तक उन्नत होता है। ऐसे व्यक्ति अधिकतर नौकरी करते हैं तथा उसी में उनका भाग्य उदय होता है। व्यापार उन्हें लाभ नहीं देता और व्यापार करने पर हानि और धोखा भी सहन करना पड़ता है इन व्यक्तियों को पुलिस जैसे डिफेंस में उच्च पद प्राप्त होता है।
मकर: जिन व्यक्तियों की कुंडली में तीसरे भाव में मकर राशि होती है, ऐसे व्यक्तियों का शरीर बहुत सुंदर होता है। सुंदर केस, चौड़ा माथा, गोरा वर्ण और चमकता चेहरा होता है। संतान की दृष्टि से ऐसे व्यक्ति सौभाग्यशाली होते हैं। मित्रों में प्रसिद्धि प्राप्त होती है और धार्मिक कार्यों में श्रद्धा रखते हैं।
कुम्भ: जिन जातकों की कुंडली में तीसरे भाव में कुंभ राशि होती है, वे गंभीर स्वभाव वाले होते हैं। भाइयों से इन्हें स्नेह मिलता है, पर सहायता प्राप्त नहीं होती। समाज में उनका आदर होता है। नए विचारों का अभिनंदन करने वाले और संगीत आदि में रुचि रखने वाले होते हैं।
मीन: जिन जातकों की कुंडली में तीसरे भाव में मीन राशि होती है, वह धनवान होते हैं। संतान से उन्हें विशेष स्नेह प्राप्त होता है और वृद्धावस्था में पुत्रों से पूरी सहायता प्राप्त होती है। वे धार्मिक कार्यों में रुचि रखते हैं। अतिथियों का आदर करते हैं और सभी को प्रसन्न रखने वाला स्वभाव इनका होता है।
आगे हम तीसरे भाव में बैठे प्रत्येक ग्रह के अनुसार क्या फल प्राप्त होता है यह जानेंगे।
ग्रहों का फल:
सूर्य: जिनके तीसरे भाव में सूर्य होता है उनके हौसले बुलंद होते हैं। झुकना वें नहीं जानते, खतरों से खेलना उनके लिए आम बात होती है। दिमागी कार्यों में उनका मुकाबला कोई नहीं कर पाता। यह राजनीति में लोकप्रिय और सफल होते हैं। भाई बंधुओं का इन्हें पूरा सहयोग मिलता है। धनवान, सुखी और आनंदमय जीवन व्यतीत करने वाले ऐसे व्यक्ति धैर्यवान होते हैं।
चंद्रमा: जिनके तीसरे भाव में चंद्रमा स्थित होता है वह शीघ्र सोचने वाले, शीघ्र फैसले लेने वाले व्यक्ति होते हैं। उनमें तुरंत निर्णय लेने की क्षमता अच्छी होती है। कठिन संघर्षों में भी बढ़ते रहना और बाधाओं पर विजय प्राप्त करना ऐसा उनका स्वभाव होता है। ऐसे व्यक्ति कम बोलने वाले होते हैं और कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य कर दिखाना इनका स्वभाव होता है। जीवन के मध्य में ही अपना रास्ता बदल देते हैं। वे यात्रा करने के शौकीन होते हैं और अपने जीवन में बहुत सी यात्राएं करते हैं। शत्रुओं का अभिमान कैसे तोड़ना है यह यह इन्हें भली-भांति पता होता है। इनका पारिवारिक जीवन कम होता है और परिवार से इनका मनमुटाव चलता रहता है।
मंगल: जिनके तीसरे भाव में मंगल होता है वे कम से कम साधनों में भी अपने जीतने की राह निकल लेते है, ऐसे जातक दृढ निश्चय वाले होते है, कोई भी निर्णय लेने से पहले अच्छा बुरा सब सोच लेते हैऔर जब एक बार निर्णय ले लेते है फिर उस पर अड़े रहते है घुमने फिरने के शोकिन होते है समाज में अपनी मेहनत से मान सम्मान बनाये रखते है इनका पारिवारिक जीवन खुशहाल होता है ख़तरों से खेलना, नये प्रयोग करना, नई योजनाओं पपर काम करना इन्हें पसंद होता है
बुध : जिसकी कुण्डली के तीसरे भाव में बुध स्थित हो, वह निश्चित रूप से दूसरों के लिए हितकारी होता है। उसकी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी होती है और उसमें परिस्थिति को पहले ही भांपने की क्षमता होती है। वह पढ़ने-लिखने का शौक़ीन होता है और ज्ञान-वृद्धि के लिए हमेशा उत्सुक रहता है। ऐसा जातक साहसी होता है तथा उसका पारिवारिक जीवन सुखी होता है।
बृहस्पति : जिसके तीसरे भाव में गुरु होता है, वह शुभ लक्षणों से सम्पन्न होता है। उसे अपने जीवन में कई बार उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं तथा संघर्षों का सामना करते रहना पड़ता है, परन्तु वह मज़बूत होता है। साहसी होने के साथ-साथ वह परिस्थिति की गम्भीरता को तुरन्त भांप लेता है और तदनुसार कार्य कर बाज़ी अपने हाथ में ले लेता है। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा जातक सफल होता है। वह एक से अधिक क्षेत्र में निष्णात् होता है तथा मशीनरी के कार्यों में शौक़ रखने वाला होता है। यद्यपि उसे शत्रुओं से कई बार आघात खाने पड़ते हैं, तथापि उसमें अटूट हिम्मत होती है। आर्थिक दृष्टि से ऐसे जातक सम्पन्न होते हैं और उनका पारिवारिक जीवन भी सुखद कहा जा सकता है।
शुक्र – जिस जातक के तीसरे भाव में शुक्र होता है, वह भाग्यहीन होता है। यद्यपि उसके पास द्रव्य होता है, परन्तु वह उसका पूर्ण उपभोग नहीं कर सकता । ऐसा जातक की मस्तिष्क शक्ति प्रबल होती है तथा वह व्यूह रचना, शत्रु-भेदन तथा संकट के क्षणों में अपूर्व साहस दिखाता है। ऐसा जातक संगीत, काव्य, चित्रकला आदि में प्रवीण होता है तथा उसे इन बातों का शौक़ होता है। यदि शुक्र स्वगृही या उच्च का होकर स्थित हो, तो जातक सफल नहीं कहा जा सकता। वह आर्थिक चिन्ता से परेशान रहता है एवं हर समय कठिन परिश्रम में जुटा रहता है। जीवन के मध्यकाल में उसे कई बार यात्राएं भी करनी पड़ती है। उसका पारिवारिक जीवन साधारण रहता है तथा सन्तान की ओर से भी उसे कोई विशेष लाभ नहीं रहता।
शनि : जिसके तीसरे भाव में शनि होता है, उसके या तो छोटे भाई होते ही नहीं और यदि छोटा भाई हो भी, तो उसे विशेष लाभ नहीं होता। साहस, वीरता, कर्मण्यता में इसका मुकाबला कम ही लोग कर पाते हैं। ऐसा जातक क्रूर और क्रोधी होता है। भयंकर कार्य करने में भी यह नहीं हिचकिचाता । बड़े भाइयों की ओर से इसे परेशानियां उठानी पड़ती हैं। ऐसे जातक जीवन भर संघर्ष से घिरा रहता है एवं कठिन परिश्रम से भाग्य को अपने अनुकूल बनाता है। शत्रुओं से खिलवाड़ करने में इसे विशेष आनन्द आता है। यह नियमों का बड़ा पाबन्द होता है तथा स्वयं के निश्चित आदर्श एवं लक्ष्य रखता है तथा उन आदर्शों का दृढ़ता से पालन करता है। इसके मित्र भी वही होते हैं, जो इसके समान प्रकृति रखते हैं। वह स्थानीय शासन का मुखिया होता है तथा अपने कठोर नियन्त्रण से सम्बन्धित लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए विवश कर देता है।
राहु : तीसरे भाव में राहु हो, तो जातक अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्ति होता है। पराक्रम एवं बल में उसकी समानता कम ही लोग कर पाते हैं। वह अपने प्रभाव से लोगों को अपने पक्ष में करने की युक्ति जानता है। वह सुन्दर और दृढ़ शरीर, मांसल भुजाओं, उन्नत वक्षस्थल एवं सामर्थ्ययुक्त व्यक्ति होता है। यह जातक प्रारम्भ में संकट देखता है व शीघ्र ही उसे मनपसन्द पद प्राप्त हो जाता है और वह उत्तरोत्तर उन्नति करता रहता है। ऐसा जातक पुलिस या मिलिटरी में विशेष सफल होता है। इसके छोटे भाई नहीं होते। यदि होते भी हैं, तो जातक को उनसे नहीं के बराबर लाभ प्राप्त होता है। इसके अपने स्वयं के मौलिक विचार होते हैं, पर कभी-कभी हठधर्मी के कारण इसे परेशानियां भी देखनी पड़ती हैं।
केतु : जिस कुण्डली के तृतीय भाव में केतु हो, वह शारीरिक शक्ति की दृष्टि से अत्यन्त सुदृढ़ होता है एवं नित्य नवीन व्यूह रचना करने वाला तथा योजनाबद्ध रूप से कार्य करने वाला होता है। ऐसा जातक शान्त होकर नहीं बैठता, प्रत्येक से झगड़ा मोल लेना इसके लिए बायें हाथ का खेल होता है। शत्रुओं को परास्त करने में यह विशेष सफल होता है। शारीरिक एवं मानसिक किसी भी रूप में यह शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होता है। आर्थिक दृष्टि से ऐसा जातक सम्पन्न होता है तथा द्रव्य की उसे विशेष चिन्ता नहीं करनी पड़ती । यद्यपि इसे पैतृक धन प्राप्त नहीं होता, तथापि अपने भुज-बल से ही धन उपार्जित कर, वह समाज में अपनी प्रतिष्ठा जमा लेता है। इसकी पारिवारिक जीवन विशेष सुखी नहीं कहा जा।
धन्यवाद
इसे भी पढ़े-
वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में तीसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में चौथे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में पांचवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में सातवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में नवम भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दसवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में बारहवें भाव का उदेश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
A very informative and excellent blog....
ReplyDeleteThank you so much 🙏
Delete