वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का क्या उदेश्य है और क्या आप इसे विस्तार से समझा सकते है? सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में?
नमस्कार
आज हम कुंडली के छठे भाव के बारे में बात करेंगे कि कुंडली के छठे भाव में किस राशि किस ग्रह का क्या फल होता है|
* छठे भाव से रोग, शत्रु, चोट, घाव, एक्सीडेंट, बीमारी, मानसिक असंतुलन, माता का दुर्भाग्य, पुत्र और भाई का दुर्भाग्य, ऋण, नाना(मां के पिता) पक्ष का विचार भी छठे भाव से ही किया जाता है। इस भाव का फलादेश सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि ऐसा देखा गया है कि जातक बीमारी से ग्रस्त रहता है और नाना पक्ष से उसे विशेष लाभ मिलता रहता है और फिर भी वह ऋण से मुक्त रहता है। इसीलिए एक ही भाव से अलग-अलग बातों का विचार सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
* छठे भाव से रोग, शत्रु, चोट, घाव, एक्सीडेंट, बीमारी, मानसिक असंतुलन, माता का दुर्भाग्य, पुत्र का दुर्भाग्य, भाई का दुर्भाग्य, नाना का घर, नौकर, नौकरी, पालतू पशु, कॉन्पिटिटिव स्पिरिट, मामा/मासी, सरकारी नौकरी, शादीशुदा जीवन का अंत, पत्नी की विदेश यात्रा, ससुराल का लाभ, पिता का व्यवसाय, व्यवसाय में भाग्य, भाग्य से मिलने वाली सरकारी नौकरी, डीप रिसर्च (PhD),बड़े भाई की मानसिक परेशानियां, आयु, विदेश में पार्टनर, विदेश में शादी, फिजिकल पार्टनर, पारिवारिक शिक्षा का स्तर, छोटे भाई के सुख/वाहन/प्रॉपर्टी, मां का पराक्रम/यात्राएं, संतान का एकत्रित किया हुआ धन, यह सब छठे भाव से देखा जाता है।
* छठे भाव को त्रिक, उपाचय स्थान भी कहा जाता है।
* छठे भाव से ही यह जाना जा सकता है कि व्यक्ति को किसी की गुलामी तो नहीं करनी पड़ेगी।
* इसी भाव से शत्रु तथा धोखा या विश्वासघात आदि के बारे में भी जाना जा सकता है।
* छठे भाव से चिंता, भय, झगड़े, मुकदमा, झंझट, क्षति, गुदास्थान, गलतफहमियां, अनुचित कार्यों का अध्ययन भी किया जा सकता है।
* मंगल छठे भाव के कारक ग्रह माने जाते हैं।
* छठे भाव में यदि कोई अशुभ ग्रह बैठा होता है, आप ग्रह है बैठा हूं तो उस भाग को पाप युक्त बना देता है लेकिन खुद शुभता प्राप्त कर लेता है और अपनी दशा में वह शुभ फल देता है।
* यदि जन्म कुंडली के छठे भाव में जिसे त्रिक स्थान कहा जाता है इसमें शुभ ग्रह विराजमान हो तो 5 में भाग को शुभ फल मिलता है लेकिन वह ग्रह खुद दूषित हो जाता है और अपनी शुद्धता को खो देता है।
यहां आपकी जानकारी के लिए शुभ ग्रह और पाप ग्रहों की सूची दी जा रही है कि आप अपनी कुंडली का विश्लेषण आसानी से कर सकें।
* शुभ ग्रह : चंद्र बुध शुक्र केतु और बृहस्पति शुभ ग्रह माने गए हैं।
* पाप ग्रह : सूर्य मंगल शनि और राहु पाप ग्रह माने गए हैं अर्थात सूर्य से मंगल अधिक पाप ग्रह है मंगल से शनि और शनि से राहु अधिक पाप ग्रह है किसी किसी ज्योतिषाचार्य ने शिवचंद्र को भी पाप ग्रह माना है।
* छठे भाव को कष्ट स्थान और उसके स्वामी को कष्टेश कहते हैं।
* छठे भाव को अंग्रेजी में 6th house और संस्कृत भाषा में काम, गमन, अस्त, सप्तम, कलत्र के नाम से जाना जाता है।
छठे भाव में राशि अनुसार फलादेश
मेष : यदि छठे भाव में मेष राशि हो तो व्यक्ति का स्वभाव दुष्ट होता है वह परिश्रमी तो होता है पर चुगलीबाजी, अफसरों के कान भरना आदि इनका स्वभाव होता है।
वृषभ : यदि व्यक्ति के छठे भाव में वृषभ राशि हो तो व्यक्ति की संतान विद्रोही होती है। जीवनसाथी के साथ भी विचारों में असमानता रहते हैं।
मिथुन : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में मिथुन राशि होती है ऐसे व्यक्ति का गृहस्थ जीवन अच्छा नहीं रहता। नौकरी से अच्छा व्यापार की ओर उनका झुकाव होगा तो इनके लिए श्रेष्ठ रहेगा। आर्थिक दृष्टि से बार-बार नुकसान उठाना पड़ता है।
कर्क : छठे भाव में कर्क राशि जिन व्यक्तियों के होती है उन्हें संतान से अधिक प्रेम करने के कारण दूसरों से बिना वजह झगड़ा मोल लेना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति ना ही तो है खुद आराम करते हैं और न अपने कर्मचारियों को आराम करने देते हैं।
सिंह : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में सिंह राशि होती है ऐसे व्यक्ति गुस्से वाले और कामुक होते हैं। परस्त्री के संपर्क में उन्हें हानि उठानी पड़ती है। घर में कलेश रहता है और संतान का सुख इन्हें बहुत कम मिलता है।
कन्या : छठे भाव में जिन व्यक्तियों की कन्या राशि होती है ऐसे व्यक्ति वीर साहसी और बलवान होते हैं। दुश्मन उनके नाम से कांपते हैं पर ऐसे व्यक्ति कामुक भी होते हैं। हल्के स्तर की स्त्रियों के संपर्क में रहने के कारण इन्हें हार आर्थिक हानि भी सहन करनी पड़ती है।
तुला : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में तुला राशि होती है ऐसे व्यक्ति धनी होते हैं पर साथ ही वे नास्तिक स्वभाव के भी होते हैं। उनमें स्वार्थ की मात्रा कुछ ज्यादा होती है जो इनके लिए नुकसानदायक भी हो सकती है।
वृश्चिक : जिन व्यक्तियों की कुंडली में छठे भाव में वृश्चिक राशि होती है। वह निम्न भाग्य के होते हैं पर कठोर परिश्रमी होते हैं। परिश्रम के बल पर वे वर्तमान समय और भविष्य को अपने अनुसार बना लेते हैं। ऐसे व्यक्ति कामुक और विलासी भी होते हैं।
धनु : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में धनु राशि होती है ऐसे व्यक्ति निर्धन होते हैं। आजीविका के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत करते हैं और मेहनत के बल पर निरंतर तरक्की करते रहते हैं। ऐसा इनका स्वभाव होता है। यह व्यक्ति किसी विधवा स्त्री से संपर्क बना कर भी धन प्राप्त कर सकते हैं।
मकर : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में मकर राशि होती है ऐसे लोग निसंदेह गरीबी में जीवन बिताते है| इनकम से ज्यादा इनका खर्च होता है| संतान रोगग्रस्त रहती है| मित्र, संतान और जीवनसाथी से इनका स्वभाव मेल नही खाता|
कुम्भ : जिनके छठे भाव में कुम्भ राशि होती है उनकी अपने अधिकारियो से नही बनती वाद-विवाद बना रहता है| बचपन में इन्हें जल से कोई क्षति पहुची होती है जिसके कारण इन्हें आजीवन जल में डूबने का भय बना रहता है|
मीन : जिनके छठे भाव में मीन राशि होती है उनका अपने संतान से मतभेद रहता है| न्यायालय में धन व्यर्थ होता है| इनके जीवन में खालीपन रहता है|
राशियों के अनुसार फलादेश
सूर्य : जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली के छठे भाव में सूर्य होता है ऐसे व्यक्ति राजनीति में कुशल, समय को पहचानने वाले, सोच समझ कर काम करने वाले होते हैं । ऐसे व्यक्तियों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं कहा जा सकता। वृद्धावस्था में इन्हें लंबी बीमारी भुगतनी पड़ती है। योगाभ्यास से इन्हे राहत मिल सकती है। अपने परिवार का कल्याण करने वाले, दोस्तों रिश्तेदारों में सर्वश्रेष्ठ पद पाने वाले, गृहस्थ जीवन का पूरा सुख भोगने वाले होते हैं। इनके बहुत से शत्रु होते हैं जो इनकी पीठ पीछे प्लैनिंग्स करते रहते हैं और सामने आकर कुछ कहने की उनमें हिम्मत नहीं होती। यह मेहनती और धनवान होते हैं। ऐसे व्यक्ति सेल्फमेड होते हैं। बुढ़ापे में इनकी सीने में दर्द, हार्ट रिलेटेड प्रॉब्लम्स और रक्त में विशुद्धि जैसे विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
चन्द्रमा : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में चंद्रमा होता है वे बचपन में तरह तरह के रोगों से ग्रस्त रहते हैं। मानसिक परेशानियां इन्हें हर समय घेरे रखती हैं। दुखों को झेलते हुए वे उनके आदी हो जाते हैं। मित्रों में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं पर यदि चंद्रमा पूर्ण बली हो तो यह जातक को सुख प्रदान करता है।
मंगल : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में मंगल होता है वह व्यक्ति युद्ध स्थल में मृत्यु को प्राप्त होते हैं। राजनीति के क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति पूरी सफलता प्राप्त करते हैं। इनका हृदय कठोर होता है। शत्रु और विपक्ष के लोगों के लिए यह हानिकारक होते हैं। यह ऊपर उठने के लिए हर तरह का प्रयास करते हैं। दुश्मन इनके नाम से कांपते हैं।
आवश्य : 1.यदि मंगल मकर राशि का होकर छठे भाव में बैठा हो तो व्यक्ति गृहस्थ जीवन का पूरा सुख भोगता है और ऐश और आराम के साथ जीवन यापन करता है। यह जातक उच्च स्तर के अधिकारी या मंत्री होते हैं।
2.यदि मंगल पर शत्रु ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक का एक्सीडेंट हो सकता है और शरीर के कोई अंग भंग हो सकते हैं।
3.शनि मंगल एक साथ छठे भाव में बैठे हो और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि ना हो तो व्यक्ति की मृत्यु पशु के द्वारा रोंदे जाने के कारण होती है अथवा ऑपरेशन के समय मृत्यु हो जाती है।
4.यदि व्यक्ति के छठे भाव में राहु और मंगल बलवान होकर बैठे हो तो व्यक्ति आत्महत्या करता है और अपने सगो को दुख देने वाला होता है।
5.यदि कर्क राशि का मंगल छठे भाव में हो तो व्यक्ति पाप कर्म में लगा रहता है।
बुध : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में बुध होता है वह व्यक्ति चिड़चिड़ा और गुस्से वाले स्वभाव के होते हैं। दूसरों की सलाह पर बिना ध्यान दिए उनके कहे अनुसार कार्य करते हैं। इनकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती। मानसिक परेशानियों से ग्रस्त रहते हैं और हीन भावना का शिकार होते हैं। यह जीवन के हर कार्य का गलत पक्ष ही देखते हैं और निराशाजनक स्थिति में रहते हैं।
छठे भाव में बुध राहु तथा शनि के साथ होता है तो व्यक्ति नौकर के विश्वासघात के कारण मारा जाता है ऐसे व्यक्ति आलसी शत्रुओं से डरने वाले और कायर होते हैं।
बृहस्पति : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में बृहस्पति होता है वह व्यक्ति समाज और जाति में अपमानित होते हैं और लगातार व्यंगो के शिकार होते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति आलसी और हाथ की सफाई दिखाने वाले भी होते हैं। शत्रुओं से डरने वाले और दुर्भाग्यशाली होते हैं। भाग्य इनसे निरंतर छल करता रहता है। इन्हें अपने जीवन में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनका स्वास्थ्य साधारण ही रहता है।
शुक्र : जिन व्यक्तियों के छठे भाव में शुक्र होता है इन्हें शत्रुओं से कोई डर नहीं होता। दोस्तों से इन्हें हमेशा फायदा होता है और प्रतिष्ठावान कुल में जन्म लेकर यह लोग विद्वान होते हैं। इनका जीवन विलासिता से भरा होता है। पर इनका चरित्र अच्छा नहीं कहा जा सकता। यह स्वस्थ, सुन्दर और विपरीत लिंग के प्रति आसक्त रहते हैं और विपरीत लिंग से संबंधित कार्यों से ही लाभ उठाते हैं।
जिनके छठे भाव में मीन राशि का शुक्र होता है वह व्यक्ति धनी विद्वान और सम्मान लेने वाला होता है।
शनि : जिनके छठे भाव में शनि होता है ऐसे व्यक्ति वीर, साहसी और लड़ाकू होते हैं। यह फूडी होते हैं अर्थात भोजन के शौकीन होते हैं और स्वादिष्ट भोजन के लिए हमेशा लालायित रहते हैं। साहस, वीरता, दृढ़ता और सूझबूझ इन में बहुत अधिक मात्रा में होती है। इनके नीचे काम करने वाले इनके लिए फायदेमंद नहीं होते। दोस्तों से इन्हे धोखा मिलता है।
जिन के छठे भाव में मंगल और शनि एक साथ बैठे हो ऐसे व्यक्तियों का पेट का ऑपरेशन होता है और इसी दौरान इनकी मृत्यु हो जाती है।
स्त्री की कुंडली में राहु और शनि के एक साथ होने पर हिस्टीरिया रोग हो जाता है।
तुला राशि का शनि यदि छठे भाव में हो तो व्यक्ति के सम्मान में वृद्धि कराता है और कुल का विस्तार करता है।
राहु : जिनके छठे भाव में राहु होता है वह व्यक्ति कठिनाइयों को आसान कर देते हैं। शत्रुओं से भी लाभ प्राप्त कर लेते हैं। इनकी उम्र लंबी होती है और धन लाभ होता रहता है। ऐसे व्यक्तियों को पूरी सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
यदि राहु उच्च का होकर छठे भाव में बैठा हो तो व्यक्ति विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित रहता है और गुप्त इंद्रियों के रोग से पीड़ित रहता है।
केतु : जिन व्यक्तियों की कुंडली में छठे भाव में केतु होता है तो ऐसे व्यक्ति जिद्दी और बनाए गए लक्ष्य तक पहुंचने वाले होते हैं। दूसरों के मुंह पर साफ साफ बात कह देने वाले होते हैं। इनका चरित्र संदिग्ध कहा जा सकता है और नाना (मां के पिता) पक्ष से व्यक्ति को खास लाभ मिलता है। यह शत्रुओं का नाश करने वाले और जीवन में हर तरह का सुख भोगने वाले स्वस्थ, सुंदर और प्रसिद्ध होते हैं।
धन्यवाद !
वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
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