कुंडली के 12 भावों से जाने रोग
नमस्कार
आज हम बात करेंगे कुंडली के 12 भावों से कैसे जाने अपने रोगों के बारे में
कुंडली के 12 भावों का विशेष महत्त्व है| भावगत होने के कारण ही राशियाँ और ग्रह अपना शुभ और अशुभ फल देते है| 12 भावों के कारण ही मनुष्य अपने बारे में जान पता है| जन्म कुंडली का यदि कोई भी भाव अशुभ राशी या ग्रह से युक्त होता है तो शरीर के अंगो में वैसे ही रोग प्रकट होने लगते है|
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किस भाव का सम्बन्ध किस रोग से है .... आइये इसके बारे में जानते है|
प्रथम भाव :- प्रथम भाव के कारक ग्रह सूर्य है| सिर दर्द, शरीर की बनावट, मस्तिष्क के रोग, मानसिक रोग, आँखों के रोग, मुहाँसे, मिर्गी, उन्माद, याद्दाश्त, स्वास्थ्य यह सब प्रथम भाव से देखा जा सकता है|
द्वितीय भाव :- द्वितीय भाव के कारक ग्रह गुरु है | मुख रोग, कान के रोग, दाहिनी आँख, नाक के रोग, गले के रोग, पेराल्य्सिस, डिप्थीरिया, फोड़ा, फुंसी, बोलने की क्षमता, वाणी, स्वर इन सब का विचार द्वितीय भाव से किया जा सकता है|
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तृतीय भाव :- तृतीय भाव के कारक ग्रह मंगल है| यात्रा में कष्ट, दुर्घटना, गला खराब, एलर्जी, नकसीर, बाजु और कंधे में दर्द या अकडन, दिमागी बुखार, दाहिना कान, श्वास नली, फेफड़े, खांसी, दमा, ब्रोंकाईटिस, धैर्य, सामर्थ्य, बल इन सब का विचार तृतीय भाव से किया जा सकता है|
चतुर्थ भाव :- चतुर्थ भाव के कारक ग्रह चंद्रमा और बुध है| छाती, हृदय के रोग, पसलियों के रोग, अजीर्ण, पेट सम्बंधित रोग, पाचन सम्बंधित समस्या, गैस, माता को कष्ट, वात रोग, कैंसर इन सब का विचार चतुर्थ भाव से किया जा सकता है|
पंचम भाव :- पंचम भाव के कारक ग्रह गुरु है| गर्भाशय, मूत्राशय, उदर रोग, दिल की धड़कन घटना/बढ़ना, कमर में दर्द, बुखार, पित्त रोग, जिगर के रोग, गुर्दे के रोग, पीलिया, जठराग्नि इन सब का विचार पंचम भाव से किया जा सकता है|
षष्ठ भाव :- इस भाव के कारक ग्रह मंगल और शनि है| इस भाव को रोग का भाव ही कहा जाता है| हर्निया, पथरी, अपेंडिक्स, अमाशय से सम्बंधित रोग, दस्त(Loose Motions), अपच, आंतड़ियों से सम्बंधित रोग, नाभि, पेट, कमर, दांत से सम्बंधित समस्या का विचार षष्ठ भाव से किया जा सकता है|
सप्तम भाव :- सप्तम भाव के कारक ग्रह शुक्र है| गुप्त रोग, जननेन्द्रिय सम्बंधित रोग, वस्ति, गुर्दे, मूत्राशय सम्बन्धी रोग, कमर दर्द, प्रमेह, मधुमेह, प्रदर, पथरी, गर्भाशय, बवासीर, स्पाण्डलाइटिस, रीढ़ की हड्डी का दर्द, काम जैसे रोगों का विचार सप्तम भाव से किया जाता है |
अष्टम भाव :- अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है। आयु, मृत्यु, मृत्यु का कारण, वीर्य विकार, रक्त दोष, गुर्दे सम्बन्धी, वायु विकार, विचित्र पेचीदा रोग, गुदा, अण्डकोश, दुर्घटना एवं चोट आदि स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता गर्भाशय एवं यौन रोगों का विचार अष्टम भाव से किया जाता है|
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नवम भाव :- नवम भाव के कारक ग्रह सूर्य व गुरू हैं। लिवर एवं रक्त विकार, कमर एवं उसके आस-पास अंगों से सम्बन्धित रोग, गठिया, साइरिका, दुर्घटना, चोट, घाव, मज्जा एवं स्त्रियों के मासिक धर्म, पीठ, पेट से सम्बंधित रोग, मेरूदण्ड से सम्बन्धित रोग, शुभ अशुभ स्वप्न, गुप्त चिन्ता एवं अधिक यात्रा से उत्पन्न थकान, मन की शान्ति, सन्तोष का विचार नवम भाव से किया जाता है|
दशम भाव :- दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध और शनि है| गठिया, एग्जिमा, त्वचा रोग, घुटनों, पीठ एवं जोड़ों के दर्द, मिर्गी, बाईं जांघ से सम्बंधित रोग या दर्द, हड्डियों सम्बन्धी एवं वायु सम्बन्धी रोगों का विचार दशम भाव से किया जाता है।
एकादश भाव :- एकादश भाव का कारक ग्रह गुरू है। इस भाव से रक्त संचालन प्रक्रिया, श्वास प्रक्रिया, नसों, जोड़ों में दर्द आदि, शीत विकार, हृदय रोग, स्नायु तन्त्र, गला, कान, बायां हाथ, पिंडलियों-पाँव (विशेषकर दाहिना) आदि में चोट, शीत लगना का विचार एकादश भाव से किया जाता है।
द्वादश भाव :- द्वादश भाव का कारक ग्रह शनि है। द्वादश भाव से मानसिक एवं नेत्र रोग, कान का दर्द, कमज़ोरी, पीलिया, एलर्जी (Allergy), बायां कान, दोनों पैर, काम जन्य, स्त्री (पत्नी) सम्बन्धी रोग, एड़ी में चोट का विचार द्वादश भाव से किया जाता है।
धन्यवाद !
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