अब आपको धनवान बनने से कोई नहीं रोक सकता। यह योग बनाएंगे आपको धनवान।
नमस्कार
ज्योतिष ग्रन्थों में धन भाव से जुड़े हुए कई योग हैं, आगे उनमें से
कुछ विशेष योग पाठकों के लाभ के लिए आगे बताए जा रहे हैं।
अचानक धन-प्राप्ति योग - यदि धन भाव का स्वामी शनि 4, 8 या 12वें में हो तथा बुध सप्तम भाव में स्वगृही होकर बैठा हो, तो
अचानक धन-प्राप्ति योग बनता है।
अचानक दिवालिया योग - यदि धन भाव में कर्क का चन्द्रमा हो
तथा आठवें भाव में शनि अपने घर में होकर स्थिर हो, तो परस्पर
महादशा-अन्तर्दशा में जातक दिवालिया बनता है।
क्रमिक धन-नाश योग : यदि बुध धन भाव का स्वामी होकर गुरु
के साथ हो तथा गुरु अष्टम भाव में हो, तो जातक पिता का संचित धन नष्ट कर डालता है।
धननाश योग : यदि धन भाव का स्वामी सूर्य लग्न में शनि के
साथ हो, तो जातक निस्सन्देह मुक़द्दमेबाज़ी में घर का समस्त धन नष्ट कर डालता है।
अचल सम्पत्ति नाश योग : यदि धनेश बुध के घर का होकर,
उसके साथ दूसरे भाव में हो और मंगल चौथे भाव में हो, तो अचल
सम्पत्ति नाश योग होता है। इस योग वाला जातक धीरे-धीरे ज़मीन-जायदाद, मकान, यहां तक कि अपने कपड़े भी बेच देता है।
धन संग्राहक योग – यदि धन भाव का स्वामी मंगल 11वें भाव
में बैठकर दूसरे घर को देख रहा हो, तो जातक धन-संग्रह करने वाला
होता है तथा वह अपनी बुद्धि से धन को खूब बढ़ा देता है।
धन असंग्राहक योग - धन भाव का स्वामी बृहस्पति स्वगृही
होकर
धन राशि में हो और शुक्र बारहवें भाव में हो, तो धन असंग्राहक योग
बनता है। इस योग द्वारा जातक धन अर्जित करता हुआ भी धन का सग्रह नहीं कर पाता।
धन-वृद्धि योग : धन भाव का स्वामी गुरु उच्च का होकर 9वें
भाव में हो, तो धन-वृद्धि योग बनता है। इस योग वाला जातक खुद
धन-संग्रह करता है एवं उसे पूर्वजों की सम्पत्ति भी प्राप्त होती है।
कोष-वृद्धि योग : धन भाव का स्वामी सूर्य हो और लग्न में उच्च का गुरु हो, तो कोषवृद्धि योग होता है। इस योग वाला व्यक्ति लखपति
होता है।
लक्ष्मी योग : लग्नेश बलवान् हो और नवम भाव का स्वामी स्वगृही हो, तो लक्ष्मी योग होता है। इस योग में जन्म लेने वाले के पास
अटूट सम्पत्ति रहती है।
धन योग : लग्न से पांचवीं राशि शुक्र की हो तथा शुक्र एवं शनि पांचवे या ग्यारहवें भाव में हों, तो धन योग होता है। ऐसा जातक जीवन में असीमित धन प्राप्त करता है।
श्री योग : लग्न से पांचवीं राशि मिथुन या कन्या हो तथा 11वें
भाव में चन्द्र व मंगल हों, तो श्री योग होता है। ऐसा योग जातक को
विशेष धनवान बनाता है।
कमला योग : लग्न से पांचवीं राशि मकर या कुम्भ हो तथा बुध
व मंगल 11वें भाव में हों, तो कमला योग होता है। ऐसा जातक जीवन में धन से
ख़ाली नहीं रहता।
वित्त योग : लग्न से पांचवीं राशि सिंह हो तथा उसमें सूर्य हो एवं
चन्द्र व गुरु 11वें भाव में हों, तो वित्त योग होता है। ऐसा जातक जीवन में लखपति बनता है।
अखण्ड धन योग : लग्न से पांचवीं राशि धनु या मीन हो तथा
11वें भाव में चन्द्र व मंगल हो, तो अखण्ड धन योग बनता है। इस
योग को रखने वाला जातक निसंदेह लखपति बनता है।
इन योगों का फलादेश करने से पूर्व आपको भावों और ग्रहों पर शुभ अशुभ ग्रहों की दृष्टि का भी ध्यान देना होगा।
धन्यवाद !
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वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में तीसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में चौथे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में पांचवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में सातवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में नवम भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दसवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
दुसरे भाव से सम्बंधित कुछ योग
वैदिक ज्योतिष में बारहवें भाव का उदेश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
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