वैदिक ज्योतिष में आठवें घर का उद्देश्य क्या है और क्या आप इसे विस्तार से समझा सकते हैं? सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में?
नमस्कार
आज हम वैदिक ज्योतिष में आठवें घर का क्या उद्देश्य है इसे विस्तार से समझाएगे, सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग अलग भाव में
* कुंडली के आठवें भाव से पूर्व जन्म, ससुराल, तंत्र विद्या, ज्योतिष, occult science, आयु, छिपा हुआ धन, छिपी हुई विद्या, गहरी रिसर्च, पाताल लोक, मानसिक परेशानियां, पिता का नुकसान, जातक के लिए पिता का नुकसान, जातक के भाग्य का नुकसान, धर्म का नुकसान, व्यवसाय से लाभ अर्थात दूसरी कमाई, बड़े भाई का व्यवसाय, विदेश में भाग्य, परिवार के पार्टनर, छोटे भाई को कोई रोग, छोटे भाई के शत्रु, छोटे भाई पर कर्ज, छोटे भाई के नौकर, छोटे भाई की नौकरी, मां की शिक्षा कैसी होगी और माता की बुद्धिमता, मामा का पराक्रम कितना है, शत्रुओं का पराक्रम कितना है आदि का पता लगाया जा सकता है।
* जन्म कुंडली के आठवें भाव से किसी भी इंसान की आयु का पता लगाया जा सकता है। उसकी कितनी जिंदगी होगी, कब मृत्यु होगी, कारण क्या होगा, व्यक्ति को मृत्यु के बाद यश प्राप्त होगा या वह अपयश का भागी होगा। इन सब बातों का आठवें भाव से पता लगाया जाता है।
* अष्टम भाव में सभी ग्रह कमजोर होते है पर सूर्य और चंद्रमा अष्टम भाव में कमज़ोर नहीं होते।
* अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि को माना जाता है।
* आठवें भाव का स्वामी जिस भाव में बैठता है उस भाव से संबंधित परेशानियों को बढ़ा देता है लेकिन अगर आठवें भाव में बैठा हुआ शनि आठवें भाव का स्वामी भी हो तो व्यक्ति की आयु में वृद्धि करता है।
* आठवें भाव को पणफर गृह, मारक स्थान और त्रिक स्थान भी कहते हैं।
* आठवें भाव को मृत्यु का स्थान भी कहा जाता है और उसके स्वामी को मारकेश अर्थात मारक ग्रह भी कहा जाता है।
* आठवां भाव से उम्र, मानसिक तकलीफे, मृत्यु, पुरानी चीजों से प्यार, विदेश में रहन सहन, गहरी प्लानिंग, क़र्ज़, समुद्र मार्ग द्वारा यात्रा, लिंग, योनि के रोग इन सब का फलादेश इसी भाव से होता है।
* पांचवें भाव का स्वामी अगर आठवें भाव में बैठा हो या पांचवे आठवे का सम्बन्ध हो या इनकी दशा चल रही हो तो व्यक्ति जो कह देता है वो बात सच हो जाती है।
* आठवें भाव का फलादेश करने से पहले आठवें भाव का स्वामी, आठवें भाव में बैठे ग्रह, आठवें भाव में ग्रहों की दृष्टि, अष्टमेश जहां पर बैठा है वह राशि, आठवे भाव के स्वामी पर ग्रहों की दृष्टि, आठवे भाव के स्वामी का बाकी ग्रहों से संबंध, दशा, महादशा और अंतर्दशा इन सब पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
* इसके अलावा कुंडली में शनि भी मारकेश माने जाते हैं।
इसलिए फलादेश करने से पहले तीनों अष्टमेश (अष्टम भाव) द्वितीय भाव और शनि का ध्यान से अध्ययन करना चाहिए। इन तीनों में से जो सबसे ज्यादा बली होता है उसी की दशा में मृत्यु समझनी चाहिए।
आठवें भाव में राशियां
मेष : जिस व्यक्ति के आठवें भाव में मेष राशि होती है वह व्यक्ति ज्यादातर विदेश में रहता है। उसे नींद में चलने या बोलने की बीमारी होती है । वह भूतकाल में हो चुकी घटनाओं को याद कर करके दुखी भी होता है। आर्थिक दृष्टि से ऐसे व्यक्ति संपन्न होते हैं और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु विदेश में होती है।
वृषभ : जिस व्यक्ति के आठवें भाव में वृषभ राशि होती है ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन के अंत समय में कफ जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इनकी बलगम के रुक जाने या सड जाने से मृत्यु होती है। रात के समय इनकी मृत्यु संभव है। यह जानवरों के सींगो से भी घायल हो सकते हैं।
मिथुन : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में मिथुन राशि होती है वह शत्रुओं के द्वारा मारे जाते हैं या मृत्यु के समय ऐसे व्यक्ति गुर्दे के रोग से भी पीड़ित हो सकते हैं।
कर्क : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में कर्क राशि होती है ऐसे व्यक्ति पानी में डूबने से मर जाते हैं या अपने ही घर में शांति से मृत्यु हो जाती है।
सिंह : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में सिंह राशि होती है इन्हें जीवन में सांपों से डर रहता है। इनकी मृत्यु भी सांप के काटने से हो सकती है या चोरों के साथ लड़ाई झगड़े में या किसी हिंसक पशु के कारण भी इनकी मृत्यु संभव है।
कन्या : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में कन्या राशि होती है या अष्टमेश छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति सूजन जैसे रोग से पीड़ित होते हैं। यह किसी बीमारी या पीड़ा के कारण ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। स्त्री की हत्या या जहर पीने के कारण भी इनकी मृत्यु हो सकती है परंतु इनकी मृत्यु अपने ही घर में होती है।
तुला : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में तुला राशि होती है उनकी मृत्यु व्रत जैसे समय में होती है। ज्यादा क्रोध के कारण भी इनकी आयु का नुकसान हो सकता है।
वृश्चिक : जिन के आठवें भाव में वृश्चिक राशि हो ऐसे व्यक्ति को जीवन के अंत के दिनों में कई विकारों का सामना करना पड़ता है तथा उसमें चर्म रोग या दवाइयों के गलत प्रयोग से मृत्यु संभव है।
धनु : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में धनु राशि होते हैं उनकी मृत्यु परिवार के अर्थात घर के बीच में ही होती है। गुदा रोग या हृदय रोग के कारण इनकी मृत्यु होती है। ऐसे व्यक्ति शांति से मृत्यु को अपना लेते हैं।
मकर : जिन के आठवें भाव में मकर राशि होती है ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु प्रभु का नाम लेते लेते पूरे परिवार के बीच होती है। इनकी मृत्यु बिना किसी व्याधि के हो जाती है।
कुम्भ : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में कुंभ राशि होती है ऐसे व्यक्ति को आग से बहुत डर लगता है। वृद्धावस्था में उन्हें वायु विकार जैसे गैस, गठिया रोग हो सकते हैं। घाव के सड़ने से भी इनकी मृत्यु संभव है।
मीन : जिन के आठवें भाव में मीन राशि होती है ऐसे व्यक्ति की वृद्धावस्था में अतिसार रोग से ग्रस्त होने के कारण भी मृत्यु हो सकती है, बुखार की अधिकता से भी मृत्यु संभव है। रक्त संबंधी बीमारियां भी इन्हें जीवन में होती हैं।
आठवें भाव में ग्रहों का फल
सूर्य : जिन व्यक्तियों के आठवें भाव में सूर्य होता है ऐसे व्यक्ति बहुत गुस्से वाले और चंचल स्वभाव के होते हैं। उनके हृदय में गुरु और अपने से बड़ों के लिए बहुत श्रद्धा होती है परंतु उन्हें लगातार रोगों से संघर्ष करते रहना पड़ता है। इनके जीवन में इनकी संगति कुछ ऐसे लोगों से हो जाती है जिनके कारण इन्हें पैसे की बर्बादी और स्वास्थ्य से हानि उठानी पड़ती है। भाग्य लगातार इन्हें बाधा देता रहता है। ऐसे व्यक्ति छल करने वाले दूर की सोचने वाले और आजीविका के लिए घर से दूर रहते है।
चन्द्रमा : अष्टम भाव में चन्द्र क्षीणबली हो, तो शीघ्र मृत्यु करा देता है, परन्तु यदि पूर्णबली चन्द्र शुक्र की राशि, स्वयं की राशि या बुध की राशि में होता है, तो जातक को सांस की बीमारी होती है एवं दिल के दौरे से उसकी मृत्यु हो जाती है।
मंगल : यदि अष्टम स्थान में क्षीणबली मंगल हो, तो जातक की जलने से मृत्यु होती है। यदि अष्टम भाव में कर्क राशि हो तथा उसमें मंगल बैठा हो, तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है। यदि धनु या मीन राशि का मंगल अष्टम भाव में हो, तो जातक कई बार मृत्यु का ग्रास होते-होते बचता है। उसका जीवन जोखिम से भरा होता है तथा वह मृत्यु से संघर्ष करता है।
बुध : यदि आठवें भाव में बुध हो तो जातक जितेन्द्रिय एवं सत्यवादी होता है। जातक सुन्दर स्वरूप व शत्रुहन्ता होता है। बाल्यावस्था में उसे सिर में चोट लगती है, जिससे उसकी नेत्र-ज्योति मन्द पड़ जाती है। अतिथिजनों का सत्कार करने वाला ऐसा व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है, परन्तु यदि बुध पापाकान्त हो या शत्रु राशि में हो, तो काम की अधिकता के कारण या परस्त्रीगमन के कारण जातक मृत्यु को प्राप्त होता है।
बृहस्पति : जिसके अष्टम भाव में गुरु हो, वह जीवन में कई बार तीर्थ यात्राएं करता है। ऐसा व्यक्ति चंचल तथा समय का पाबन्द होता है, परन्तु त्वरित निर्णय लेने में वह अपने आपको असमर्थ-सा अनुभव करता है। उसे स्त्री-सुख श्रेष्ठ होता है। ऐसा व्यक्ति योगाभ्यास में भी ध्यान देने वाला होता है।
शुक्र : यदि अष्टम भाव में शुक्र हो तो जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। वह राजा की सेवा में तत्पर रहने वाला तथा राजकीय नौकरी में सफलता प्राप्त करता है। वह अधिकारियों का प्रिय होता है तथा जीवन में अपने मित्र एवं सम्बन्धियों को ऊंचा उठाने में सहयोग देता है। शिकार में उसे रुचि होती है तथा आनंद सहित वृद्धावस्था प्राप्त करता है।
शनि : अष्टम भाव में शनि हो, तो जातक लम्बी आयु प्राप्त करता है तथा घर से दूर रहकर आजीविका-प्राप्ति में कष्टरत रहता है। ऐसे व्यक्ति को परिवार से विशेष स्नेह नहीं मिलता। इसकी बाल्यावस्था कष्ट में बीतती है एवं यौवनकाल में यह संघर्षशील रहता है। यदि शनि क्षीण होता है, तो चोरी के इल्ज़ाम में पकड़ा जाता है या इस पर झूठा मुकद्दमा चलता है। कई बार ग़लतफ़हमियों के कारण इसे बुरा समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में यह ऐसा होता नहीं है।
राहु : जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में राहु होता है ऐसे व्यक्ति लंबी उम्र वाले होते हैं यह कवि, लेखक ,पत्रकार , संपादक या फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर होते हैं। धर्म-कर्म को समझते हुए भी उस में रुचि नहीं रखते और विद्रोही स्वभाव देखा जाता है ऐसे व्यक्ति का बचपन परेशानियों में बीतता है। इनका गृहस्थ जीवन अच्छा होता है। 28 वर्ष के बाद भाग्य साथ देता है।
केतु : जिनकी कुंडली में राहु आठवें भाव में होता है। इन्हे युवावस्था में ही बवासीर का रोग होता है किसी सवारी से गिरकर चोट लगती है। आर्थिक रूप से ये सामान्य होते है। जीवन में इन्हे लाटरी से धन प्राप्त हो सकता है।
धन्यवाद!
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