वैदिक ज्योतिष में पांचवे घर का उद्देश्य क्या है और हम इसे विस्तार से समझेंगे। सभी राशियों, ग्रहों और स्वामी के साथ अलग-अलग भाव में।
नमस्कार
आज हम वैदिक ज्योतिष में पांचवे घर का उद्देश्य क्या है सभी राशियों और ग्रहों के साथ इसके बारे में बताएंगे।
* जन्म कुंडली के पांचवें भाव से ही व्यक्ति की शिक्षा के संबंध में कि कैसी शिक्षा प्राप्त करेगा, शिक्षा के क्षेत्र में कितना आगे जाएगा, व्यक्ति के जीवन में शिक्षा फलदायक रहेगी या नहीं रहेगी, यह सब कुछ पंचम भाव से ही जाना जा सकता है।
* विद्या, संतान, दादा, कार्य प्रवीणता, भावनाएं, जातक की ख्याति, बुद्धि, दक्षता, नीति, देशभक्ति, गर्भस्थान, नौकरी, धन मिलना, अचानक धन की प्राप्ति, लॉटरी, सट्टा, जुआ, जठराग्नि, हाथ का यश, नम्रता, मुत्रपिंड, ईश्वर भक्ति, उच्च अधिकारियों से संबंध, जीवन में किए गए पुण्य, इसी भाव से देखी जाती है।
* ज्योतिष में पांचवे भाव का अलग ही महत्व होता है क्योंकि यही वह भाव है, जिस भाव से व्यक्ति की संतान, व्यक्ति की शिक्षा, संतान कितनी होंगी, उसके पुत्र कितने होंगे, पुत्रियां कितनी होंगी, उनका चरित्र कैसा होगा, रंग रूप कैसा होगा, स्वास्थ्य कैसा होगा उन्नति होगी या नहीं होगी, संतान के साथ व्यक्ति के संबंध कैसे होंगे, यह सब कुछ इसी भाव से देखा जाता है।
* आने वाली संतान योग्य होगी या नहीं होगी, वह नौकरी करेगी या व्यापार करेगी, संतान के माध्यम से व्यक्ति को प्रसिद्धि प्राप्त होगी या नहीं होगी, पुत्री का विवाह कब होगा, उनको कैसा परिवार या पति मिलेगा, उनके जीवन में कैसे योग हैं, इसका ज्ञान भी 5 वें भाव से ही किया जाता है।
* पांचवी भाव का कारक ग्रह गुरु होता है।
* फलादेश करते समय भाव, भाव का स्वामी, कारक ग्रह है, इन सब पर ध्यान देना चाहिए। जैसे संतान के बारे में जानकारी लेते समय जन्म कुंडली के पांचवें भाव, पांचवें भाव के स्वामी और संतान के कारक ग्रह गुरु पर ध्यान देना चाहिए।
* जन्मकुंडली का पांचवा भाव त्रिकोण स्थान कहलाता है।
* चौथे भाव का स्वामी यदि पांचवें भाव में बैठा हो और पांचवें भाव का स्वामी चौथे भाव में बैठा हो तो यह बहुत ही लाभदायक होता है।
* पांचवें भाव में यदि शनि और राहु विराजमान हो तो जातक को संतान सुख में बाधा होती है।
* पांचवें भाव में गुरु अकेला हो तो जातक को संतान से कुछ खास सुख नहीं प्राप्त होता और पहला पुत्र होने पर उससे मतभेद बना रहता है।
* पांचवें भाव को पणफर गृह, त्रिकोण स्थान कहते हैं।
* पांचवे में भाव को विद्या स्थान, संतान स्थान या सुत स्थान कहते हैं और उसके स्वामी को पंचमेश या सुतेश कहा जाता है।
* 5 में भाग को अंग्रेजी में 5th house कहा जाता है और संस्कृत भाषा में वृद्धि, पितृ, नंदन, देवराज, पंचक कहा जाता है।
* पांचवे भाव का फलादेश करने से पहले यह ध्यान में रखना चाहिए कि पंचम भाव की राशि क्या है, पंचम भाव का स्वामी कौन है, पंचम भाव का स्वामी किस भाव में बैठा है, पंचम भाव के स्वामी के साथ कौन-कौन से ग्रह बैठे हैं, पंचम भाव में कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं, पंचम भाव पर किन किन ग्रहों की दृष्टि है, पंचम भाव के स्वामी पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है, पंचमेश कारक है या अकारक है, पाप ग्रह के साथ है, सौम्य ग्रह है, शुभ ग्रह है या दुष्ट ग्रह है और पंचम भाव से संबंधित दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा भी ध्यान में रखनी चाहिए।
* पांचवें भाव में अगर एक से ज्यादा ग्रह हो तो जो ग्रह सबसे ज्यादा डिग्री लिए हो या बली होता है उसका बल सबसे अधिक और बाकी ग्रहों का बल उसके अनुसार ही समझना चाहिए।
पांचवें भाव में राशियों से फलादेश
मेष : जिस व्यक्ति के पांचवें भाव में मेष राशि होती है वह गुस्से वाले स्वभाव का होता है और विवेक भी बहुत कम होता है। वह कई बार इतना उतावला हो जाता है कि ऐसे काम कर देता है जिसके लिए उसे आगे जाकर पछताना पड़ता है। घर में पति पत्नी का एकमत नहीं होता और पुत्र के विचारों से भी उसकी असमानता रहती है पुत्र से भी नहीं बनती। ऐसे व्यक्तियों का हृदय अस्थिर रहता है और वह किसी भी प्रश्न पर तुरंत निर्णय नहीं ले पाते।
वृषभ : जिन जातकों के पांचवें भाव में वृषभ राशि होती है वे लोग आसानी से धन प्राप्त कर लेते हैं और पैसा जोड़ने में ही लगे रहते हैं। उन्हें कई बार लॉटरी या जुए से भी लाभ हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का जीवनसाथी सुंदर और भाग्यशाली होता है पर उसे भारी चिंता का सामना करना पड़ता है। संतान या तो देर से होती है या संतान से उसे वो फल प्राप्त नहीं होता जैसा वह चाहता है या संतान दुर्बल और अच्छे स्वभाव की नहीं होती। ऐसे व्यक्ति आसानी से माफ़ कर देने वाले, धैर्य रखने वाले और समझदार होते हैं।
मिथुन : जिन व्यक्तियों के पांचवें भाव में मिथुन राशि होती है। उन्हें संतान का पूरा सुख प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति दृढ़, साहसी और मजबूत होते हैं पर इनके विचारों में स्थिरता नहीं होती। किसी भी कार्य को काफी समय तक विचार नहीं करते और तुरंत निर्णय ले लेते हैं। इन्हें क्रोध जल्दी आता है परंतु शांति भी जल्दी ही हो जाता है। इनकी कुंडली में विद्या योग होता है। ऐसे व्यक्ति की शिक्षा में कई प्रकार की बाधाएं उपस्थित होती हैं पर फिर भी यह उनका सामना करके शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं।
कर्क : जिन व्यक्तियों के पांचवें भाव में कर्क राशि होती है उनकी पुत्रियां अधिक होते हैं और पुत्र का सुख देर से प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति शीघ्र ही दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं और संतान सुख से भी दुखी रहते हैं। ऐसे व्यक्ति विनयशील समझदार और विनम्र होते हैं।
सिंह : इन व्यक्तियों की कुंडली में पांचवें भाव में सिंह राशि होती है ऐसे व्यक्ति क्रोधी स्वभाव के होते हैं और कुछ भी इन्हें सहन नहीं होता मजाक बिल्कुल पसंद नहीं होता और रिश्तेदारों के साथ उनकी कम ही बनती है। ऐसे व्यक्ति क्रूर स्वभाव के होते हैं और निर्दयता पूर्ण कार्य करने में बहुत मजा आता है। ऐसे व्यक्तियों की लड़कियां अधिक होती हैं जीविका के लिए घर से दूर रहते हैं और बहुत मेहनत करनी पड़ती है पर यह साहसी और हिम्मत वाले होते हैं।
कन्या : व्यक्तियों के पांचवें भाव में कन्या राशि होती होती है ऐसे व्यक्ति बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और बेवजह का दिखावा करने में विश्वास रखते हैं। असलियत कुछ और होती है और यह दिखाते कुछ और हैं। ऐसे लोग मोटी बुद्धि के होते हैं। समय को नहीं समझ पाते और अपने सिद्धांतों पर व्यर्थ ही अड़े रहते हैं जिसके कारण उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता है। जल्दी निर्णय लेने की क्षमता इनमें होती ही नहीं। इनको थोड़ा सा भी अधिकार मिल जाए तो यह उसका दुरुपयोग करते हैं। इन्हें पुत्र सुख का अभाव रहता है।
किसी स्त्री की कुंडली में पांचवें भाव में कन्या राशि होती है तो वह स्त्री धर्म कर्म में विश्वास रखने वाली होती है। पाप कर्मों से दूर रहती है और पुत्र सुख से वंचित रहने के कारण दुखी रहती हैं। ऐसे जातक को गहने बहुत प्रिय होते हैं।
तुला : जिन व्यक्तियों के पांचवें भाव में तुला राशि होती है ऐसे व्यक्ति सुशील, नम्र स्वभाव के और पढ़ाई से प्यार करने वाले होते हैं। सुंदर भी होते हैं और लोग इनकी सुंदरता की तारीफ भी करते हैं। इनकी आंखें बहुत सुंदर होती हैं ऐसे व्यक्ति कोई भी काम करने में तत्पर रहते हैं। यदि स्त्री की कुंडली में पांचवें भाव में तुला राशि हो तो वह बहुत ही प्रभावशाली होती है।
वृश्चिक : जिन व्यक्तियों के पांचवें भाव में वृश्चिक राशि होती है ऐसे व्यक्ति गुप्त रोगों से पीड़ित रहते हैं। इन्हें संतान सुख प्राप्त होता है और इनका शरीर बहुत सुंदर होता है। ऐसे व्यक्ति सहनशील और शांत दिमाग से सोच समझ कर काम करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति जिस काम को एक बार हाथ में ले लेते हैं उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं और धार्मिक कार्यों में आगे रहते हैं।
धनु : जिनकी कुंडली में पांचवें भाव में धनु राशि होती है। उन्हें घोड़ों से बहुत प्रेम होता है। घुड़सवारी इन्हें बहुत पसंद होते हैं दुश्मनों का घमंड कैसे तोड़ना है इन्हें बहुत अच्छे से पता होता है। अपने से बड़े लोगों का मान सम्मान करते हैं। इन्हें संतान सुख प्राप्त होता है और इनका पुत्र इनके लिए बहुत ही आज्ञाकारी होता है।
मकर : जिन के पांचवें भाव में मकर राशि होती है ऐसे लोग मैले मन वाले बुरे काम और गंदी राजनीति में लगे होते हैं। चापलूसी करने मैं ऐसे लोग बहुत आगे होते हैं और समय को पहचानने वाले होते हैं। शत्रुओं से भी काम निकलवाने में यह बहुत आगे होते हैं। चरित्र की दृष्टि से इन्हें सामान्य कहा जा सकता है।
यदि किसी स्त्री की कुंडली में पांचवें भाव में मकर राशि हो तो वह बहुत अच्छी होती है। ऐसी स्त्री सुयोग्य और आगे पीछे की सोच कर काम करने वाली होती है। यदि इस भाव में कोई और ग्रह कारक हो तो ऐसे व्यक्ति की स्मरण शक्ति बहुत तेज होती है।
कुम्भ : जिनकी कुंडली में पांचवें भाव में कुंभ राशि हो उनका मन अस्थिर होता है ऊपर से शांत दिखाई देने पर भी उनके ह्रदय में हलचल चलती रहती है। बहुत ही गंभीर होते हैं। ऐसे व्यक्ति बिना वजह झूठ नहीं बोलते दूसरों की भलाई और परोपकार के काम करने में इन्हें खुशी महसूस होती है। प्रसिद्धि भी ऐसे व्यक्तियों को बहुत जल्द मिल जाते हैं। कष्ट सहने में यह माहिर होते हैं और भयंकर परिस्थितियों में भी डटे रहते हैं। संतान और विद्या सुख इन्हें आसानी से मिल जाता है।
मीन : जिन व्यक्तियो के पांचवें भाव में मीन राशि होती है। ऐसे व्यक्ति में कामवासना अधिक होती है। भावुक स्वभाव के होते है। हर समय मुस्कुराहट इनके चेहरे पर बनी रहती है। सौम्या मुख वाले होते हैं। संतान सुख इन्हें मध्य रहता है। जीवनसाथी से मतभेद के कारण परिवार में कष्ट रहता है। इनका बुढ़ापा सफल होता है।
पांचवें भाव में ग्रहों से फलादेश
सूर्य : जिन व्यक्तियों की कुंडली में पांचवें भाव में सूर्य होता है उन्हें संतान जल्दी नहीं मिलती। स्त्री का गर्भपात हो जाता है और संतान का सुख देरी से मिलता है। जीवन में खुशियों की कमी रहती है और कहीं तरह के जीवन में उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं। बचपन इनका कष्ट में निकल जाता है और बुढ़ापा भी संघर्ष में निकल जाता है। जीवन के मध्य में उन्हें दिल से संबंधित कुछ बीमारियां भी हो जाते हैं या दिल के दौरे के कारण मृत्यु भी हो सकती है। इनकम से ज्यादा इनका खर्च ज्यादा रहता है।
चन्द्रमा : जिनकी कुंडली के पांचवें भाव में चंद्रमा होता है उन्हें संतान का पूरा सुख प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति की संतान सरल, सौम्य गुणों से भरपूर और प्रतिष्ठावान होती है, जो अपने पिता या माता के नाम को विख्यात करती है। आर्थिक क्षेत्र में भी ऐसे व्यक्ति अच्छे होते हैं। इनकम के स्तोत्र एक से ज्यादा होते हैं और जीवन में सुख भोगते हैं। ऐसे व्यक्ति की स्त्री भी गुणवान होती है। इन्हें जमीन से लाभ होता है और खुद का मकान भी होता है। ऐसे व्यक्ति ईश्वर से डरने वाले होते हैं भगवान की पूजा रोजाना करते हैं। धार्मिक कार्यों के लिए यह बढ़-चढ़कर सहयोग देते हैं। जितना संभव होता है उतना सत्य बोलते हैं और इमानदारी से जीवन बिताते हैं। चतुर और कलाओं का ज्ञान रखने वाले और तत्पर इस तरह के होते हैं।
मंगल : जिन व्यक्तियों की कुंडली में पांचवें भाव में मंगल होता है वे पुत्र रहित होते हैं। यदि मंगल निर्बल हो तो वह पुत्रों द्वारा प्रताड़ित होता है और दुख भोगता है। ऐसे व्यक्ति पाप कर्मों में लगे रहते हैं पर साहसी होते हैं। साहस के बल पर यह भयंकर से भयंकर परिस्थितियों का सामना कर लेते हैं। इनका जीवन संघर्ष वाला होता है। जीवन साथी के साथ मतभेद बना रहता है पर फिर भी कुछ ना कुछ ऐसा बीच का रास्ता निकाल लेते हैं जिससे सब कुछ सामान्य हो जाता है। यह व्यक्ति डॉक्टर वैद्य आदि के क्षेत्र में नाम बना सकते हैं।
बुध : जिनकी कुंडली में पांचवें भाव में बुध होता है ऐसे व्यक्ति बहुत सौभाग्यशाली होते हैं। इनका जीवन खुशियों में बीत जाता है। जीवनसाथी के मामले में ऐसे व्यक्ति सौभाग्यशाली होते हैं। इन्हें गुणवान समझदार और पढ़ी-लिखी जीवन साथी प्राप्त होती है। संतान की ओर से भी ऐसे व्यक्ति बहुत सौभाग्यशाली होते हैं। संतान अधिक होती है, कन्या संतान इनकी विशेष होती है। यह हंसमुख और अच्छा जीवन बिताते हैं। देवताओं की भक्ति, बड़ों पर श्रद्धा और पवित्र जीवन बिताने वाले होते हैं।
पांचवें भाव में बुध होता है वह सेक्रेटरी, सचिव, मैनेजर या मिनिस्टर बन सकते हैं। इनकी बुद्धि बहुत अच्छी होती है और जल्दी निर्णय लेने की इनमें योग्यता होती है। ऐसे व्यक्ति मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी नहीं घबराते और उल्टी परिस्थितियों को भी अपने अनुसार बना लेते हैं।
परंतु 5 में भाव का फलादेश करने से पहले आप को 5वें भाव में पढ़ रहे ग्रहों की दृष्टि, ऊंच-नीच सब कुछ देखना अनिवार्य है।
बृहस्पति : जिनके पांचवें भाव में बृहस्पति होता है वह व्याकरण, हिस्ट्री और कानून में रुचि रखने वाले होते हैं, ऐसे व्यक्ति तंत्र मंत्र वेद पाठ आदि में भी रुचि रखते हैं। जीवनसाथी के मामले में सौभाग्यशाली होते हैं इन्हें सुंदर, गुणवान जीवनसाथी प्राप्त होता है। दोनों में प्रेम रहता है। इनकी स्मरण शक्ति कुछ कमजोर होती है।
सेक्रेटरी, सलाहकार होते हैं। इन्हें घर की सजावट और खुद की सजावट पर खर्च करना पसंद होता है। इन्हें जीवन में मित्र बहुत अच्छे मिलते हैं और सभी मित्र इन के सुख दुख में खड़े होने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति गंभीर, विपक्षियों के सुनने वाले, क्षमा करने वाले, परोपकारी, चतुर और धनवान होते हैं। इन्हें संतान का सुख आसानी से प्राप्त हो जाता है और उच्च वाहन का सुख भी इन्हें प्राप्त होता है।
शुक्र : पांचवें भाव में शुक्र होता है ऐसे व्यक्ति कल्पनाशील होते हैं। इन्हें कविताएं करना पसंद होता है, संगीत, नाचना गाना, कला इन सब में भी रूचि होती है। ऐसे व्यक्ति के बहुत से मित्र होते हैं और इनके जीवन में सहायता करने वाले भी होते हैं। संतान सुख भी अच्छा होता है और 5 से अधिक संतान भी हो सकते हैं। पुत्रियों की संख्या अधिक होती है और बुढ़ापे में संतान का पूरा सुख मिलता है। यह व्यक्ति हंसमुख और रंगीले स्वभाव के होते हैं। इनका जीवन आनंद के साथ निकलता है। इन्हें पूरा सम्मान प्राप्त होता है। जीवन में जो निश्चय कर लेते हैं, उसे बिल्कुल पूरा करते हैं, हो सकता है, इनका बचपन कष्ट में बीता हो और पढ़ाई के समय इनके जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आए हो पर ऐसे व्यक्ति जवानी में पूरा संघर्ष करते हुए अपने आज को अपने अनुसार बना लेते हैं।
शनि : जिन के पांचवें भाव में शनि होता है उनका दिमाग बेवजह की विचारों से घिरा रहता है। इनका बेफिजूल की बातों में दिमाग लगा रहता है। इनकम से ज्यादा इनका खर्च अधिक होता है। अगर शनि उच्च का होकर पांचवें भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति के पैरों में कमजोरी ला सकता है। दोस्तों से विवाद होता रहता है और जो भी योजनाएं बनाते हैं उसमें सफल होते हैं।
राहु : पांचवें भाव में राहु होता है उनके लिए राहु बहुत ही नुकसानदायक होता है। जीवन में मित्रों की कमी रहती है और शत्रुओं से भी इनका जीवन घिरा रहता है। संतान का दुख इन्हें सहन करना पड़ता है और घर में कलेश भी इनकी चिंता का कारण बना रहता है। ऐसे व्यक्ति गुस्से वाले और दिल के रोगी होते हैं।
केतु : पांचवें भाव में केतु होता है ऐसे व्यक्ति गरीबी में जीवन निकालने वाले होते हैं। इन्हें जीविका के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। पेट से संबंधित बीमारियां इन्हें लगी रहती हैं और ऑपरेशन भी कराना पड सकता है। इन्हें वात रोग की शिकायत होती है।
भाइयों से इनकी नहीं बनती और रिश्तेदारी भी इनके लिए परेशानी खड़ी करने वाली होती हैं। भाई इन्हें धोखा भी दे सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में यह पीछे रहते हैं और विद्या प्राप्त ना करने की कमी इन्हें सारी उम्र खटकती रहती है। भावनाओं में आकर यह गलत काम भी कर देते हैं। जिससे यह परेशान भी रहते हैं। मुकदमा, सट्टा ऐसे कामों में इनका पैसा बहुत बर्बाद होता है।
धन्यवाद!
इसे भी पढ़ें :
वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में तीसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में चौथे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में पांचवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में सातवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में नवम भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दसवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
दुसरे भाव से सम्बंधित कुछ योग
वैदिक ज्योतिष में बारहवें भाव का उदेश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
No comments:
Post a Comment