मांगलिक दोष का निवारण - Tarot Duniya

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Sunday, September 11, 2022

मांगलिक दोष का निवारण

 

क्या मांगलिक लड़के/लड़की की शादी गैर-मांगलिक लड़की/लड़के से हो सकती है?


नमस्कार 


आज हम बात करेंगे मांगलिक दोष के बारे में क्या मांगलिक व्यक्ति का विवाह गैर मांगलिक व्यक्ति से किया जा सकता है|

प्राचीन ग्रन्थों तथा मुहूर्त्त ग्रन्थों में वर-वधु की कुण्डलियों में ग्रह स्थितियों के मिलान विशेषकर मंगलीक दोष की डराने वाली भ्रामक स्थिति के बारे वर्णन नहीं मिलता है। आजकल अधिकांश ज्योतिषी भाई लड़के-लड़की के नक्षत्रों पर आधारित गुण-मिलान के उपरान्त निर्मित जन्म कुण्डलियों के मिलान का निर्णय मंगलीक योग के आधार पर ही करते हैं। मंगलीक दोष सम्बन्धी अधूरे ज्ञान और गलत धारणाओं के कारण ही बहुत से सुयोग्य लड़कियों व लड़कों का परस्पर विवाह नहीं हो पाता अथवा कई बार बहुत देरी से बेमेल विवाह हो जाता है। कई बार तथाकथित मंगलीक दोष के दोषारोपण के फलस्वरूप लड़के या लड़की के माता-पिता जातक की वास्तविक जन्म पत्रिका या जन्म समय आदि को छिपाने का प्रयास भी करते है।

 

मंगलीक दोष के शुभ अशुभ प्रभाव का निर्णय करते समय मिलान से सम्बन्धी अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

अपनी जन्मकुंडली के 12 भावों से जाने रोग 

मंगलीक योग सदा अनिष्टकारी नहीं होता| आज के समय में ज्योतिष शास्त्र के लिए लोगों की रूचि और विश्वास तो बढ़ रहा है पर इस शास्त्र के वास्तविक उपयोग की ओर बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। आमतौर पर  ज्योतिषी विवाह के योग्य वर/वधु के वर्ण, वश्य, तारा, राशिमैत्री, भकूट, अष्टकूट पर आधारित गुण मिलान के बाद दोनों की कुण्डलियों में मंगलीक-योग की ओर ध्यान देते हैं। 



1. लड़के या लड़की की जन्म कुण्डली में मंगल 1, 4, 7, 8 या 12वें भाव में हो, तो लड़का/लड़की अपने जीवनसाथी के लिए विनाशकारी होता है। इस प्रकार के मंगलीक दोष होने पर यदि वर और वधु दोनों का मंगल समान हो या कोई अन्य पापग्रह मंगल के समान उसी भाव में स्थित हो तो उस स्थिति में विवाह किया जा है। ऐसा होने पर दोनों की आयु और संतान सुख में वृद्धि होती है|


2. कुछ ज्योतिष ग्रंथो में चन्द्रमा एवं शुक्र से भी मंगलीक दोष का विचार किया है, क्योकि चन्द्रमा मन का कारक तथा शुक्र स्त्री कारक ग्रह माना गया है। फलित ग्रन्थों में चन्द्र एवं शुक्र से भी 1, 4, 7, 8 इत्यादि स्थानों पर मंगल का बैठना अशुभ माना गया है।

3. चन्द्र से चतुर्थ भाव में मंगल होने से जातक सुखहीन, दरिद्र और पत्नी की आयु पति से कम होती है।

4. इसी तरह चन्द्र से सातवें भाव में मंगल हो, तो उस मनुष्य की स्त्री दुःशीला, कटुस्वभाव की एवं अप्रियवादिनी होती है| 

5. चन्द्र और शुक्र से सातवें भाव में मंगल और शनि हो तो पत्नी और पुत्र की हानि होती है| 

 

  • दुसरे, सातवें और आठवें भाव में (मंगल के अतिरिक्त) अन्य शुभाशुभ ग्रहों की स्थिति और दृष्टि, इन्हीं भावों के भावेश तथा विवाह-सुख कारक चन्द्र, शुक्र और गुरु आदि ग्रहों की स्थिति, नवांश और चलित कुण्डली तथा अष्टक वर्ग में मंगल की शुभाशुभ स्थिति तथा दशा, अन्तर्दशा देखने के बाद ही मंगल या मंगलीक दोष सम्बन्धी अन्तिम निर्णय करना चाहिए। 

  • किसी जातक/जातिका की कुण्डली के लग्न, व्यय, चतुर्थ, और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों, तो स्त्री पति के लिए अनिष्टकारी तथा पति स्त्री के लिए अनिष्टकारी माना जाता है| 

  • इस तरह सिर्फ मंगल को ही नहीं बल्कि अन्य क्रूर और पाप ग्रहों जैसे - शनि, राहु, केतु, सूर्य, क्षीण चन्द्र आदि को भी न्यून या अधिक रूपेण वैवाहिक जीवन में बाधक माना गया है।

  • कुण्डली में मंगल नीच, अस्त या शनि से दृष्ट, या भावेश आदि के कारण अशुभ हो, तो जातक का उग्र स्वभाव का, झगड़ालू, उतावला, स्त्री के साथ कटु सम्बन्ध, भाई-बन्धुओं से विरोध, रोगी, मिथ्याभिमानी, असन्तुष्ट, क्रोधी, दुराग्रही और आर्थिक दृष्टि से परेशान होता है। यह दुर्घटना, चोट आदि का भी कारक है।

  •  यदि कुण्डली में मंगल शुभ हो, तो जातक उत्साहशील, धैर्यवान, पराक्रमी, भाई-बन्धुओं के सुखों से युक्त, धन, भूमि-जायदाद, स्त्री एवं पुत्र-सन्तान आदि सुख और उच्च पद प्राप्ति आदि प्रतिष्ठाओं को प्राप्त करता है। कुछ राशियों में तो मंगल वैसे भी शुभ माना जाता है-जैसे मेष, वृश्चिक, मकर, सिंह, धनु और मीन । इसके अतिरिक्त कुण्डली में मंगल की केन्द्र-त्रिकोण में स्थिति होने से भी शुभ एवं योगकारक माना जाता है। 

  • मेष, कर्क, सिंह, धनु एवं मीन आदि लग्नों में भावेश के कारण ही मंगल को शुभ एवं योग कारक माना जाता है। 

परन्तु ध्यान रहे, सभी लग्नों और राशियों में मंगल का एक जैसा प्रभाव नहीं होता है।

 

मांगलिक दोष को काटने वाले कुछ योग 

  1.  शनि भौमोऽथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत् । तेष्वेव भवनेष्वेव भौमदोष विनाशकृत् ॥
फलितसंग्रह के अनुसार

अर्थ :

 लड़की की कुण्डली में जिस स्थान पर मंगल स्थित (मंगलीक कारक) हो, और लड़के की कुण्डली में उसी
पर शनि, मंगल, राहु आदि कोई पाप ग्रह स्थित हों, तो मंगल दोष भंग हो जाता है। इसी प्रकार लड़के की कुण्डली में मंगल दोष हो
लड़की की कुम्डली में उसी भाव में कोई पाप ग्रह होने से भी मंगल दोष नहीं होता।


2 .  अज़े लग्ने व्यये चापे पाताले बृश्चिके कुजे। द्यूने मृगे कर्किचाष्टौ भौमदोषो न विद्यते ॥ 

 मु. परिजात के अनुसार 

अर्थ :

 मेष राशि का मंगल लग्न में, कर्क राशि का मंगल आठवें भाव में, वृश्चिक राशि का मंगल चौथे भाव में, मकर राशी का मंगल सातवें भाव में और धनु राशि का 
मंगल बाहरवें भाव में हो, तो मंगल दोष नहीं होता। 


3 .   न मंगली चन्द्र भृगु द्वितीये, न मंगली पश्यति यस्य जीवा। न मंगली केन्द्रगते च राहुः, न मंगली मंगल-राहु योग||

मुहूर्त्त दीपक के अनुसार

अर्थ :

 यदि दुसरे भाव में चन्द्र-शुक्र का योग हो या मंगल, गुरू की दृष्टि हो, केन्द्र भावों में राहु हो अथवा केन्द्र में राहु-मंगल का योग हो, तो मंगल दोष नहीं होता।


4 .  केन्द्र कोणे शुभादये च त्रिषडायेऽप्यसद्ग्रहाः। तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा ॥ 

 मु. चिन्तामणि के अनुसार 

अर्थ :
 
केंद्र और त्रिकोण में यदि शुभ ग्रह हों तथा 3, 6, 11वें भावों में पाप-ग्रह हों तथा सप्तमेश ग्रह सप्तम में ही हो तो मंगल दोष नहीं होता।


5 .  गुरू (सप्तम भाव में न होकर) केन्द्र (1, 4, 10) और त्रिकोण (5, 9) में हो तथा सूर्य 11वें और लग्न तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम
में हो तो सभी दोषों का नाश माना जाता है।



6 .  यदि वर-वधु की कुण्डलियों में परस्पर राशिमैत्री हो, 27 गुण या अधिक मिलान होता हो तो भी मंगल दोष
नहीं रहता।

 वर-वधु की कुण्डलियों का मिलान करते समय भाव स्थिति, मंगल या मंगलीक दोष पर ही अत्यधिक बल न देते हुए कुंडली मिलन से सम्बन्धित अन्य तत्त्वों जैसे - मंगल के साथ अन्य ग्रहों का योग, सप्तमेश, भावेश ग्रह की स्थिति, सप्तम भाव पर अन्य शुभ-अशुभ ग्रहों की दृष्टि तथा विवाह सुखकारक गुरू-शुक्र-चन्द्र
तथा नवांश कुण्डली में भी इन्ही सब ग्रहों की स्थिति का विवेचन करना चाहिए। 

धन्यवाद !




वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में  

वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में तीसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में चौथे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में पांचवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में सातवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में  

वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में नवम भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में

वैदिक ज्योतिष में दसवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में 

वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों  का फल अलग अलग भाव में  

वैदिक ज्योतिष में बारहवें भाव का उदेश्य और राशियों, ग्रहों, और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में 

 दुसरे भाव से सम्बंधित कुछ योग 







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