क्या मांगलिक लड़के/लड़की की शादी गैर-मांगलिक लड़की/लड़के से हो सकती है?
नमस्कार
आज हम बात करेंगे मांगलिक दोष के बारे में क्या मांगलिक व्यक्ति का विवाह गैर मांगलिक व्यक्ति से किया जा सकता है|
प्राचीन ग्रन्थों तथा मुहूर्त्त ग्रन्थों में वर-वधु की कुण्डलियों में ग्रह स्थितियों के मिलान विशेषकर मंगलीक दोष की डराने वाली भ्रामक स्थिति के बारे वर्णन नहीं मिलता है। आजकल अधिकांश ज्योतिषी भाई लड़के-लड़की के नक्षत्रों पर आधारित गुण-मिलान के उपरान्त निर्मित जन्म कुण्डलियों के मिलान का निर्णय मंगलीक योग के आधार पर ही करते हैं। मंगलीक दोष सम्बन्धी अधूरे ज्ञान और गलत धारणाओं के कारण ही बहुत से सुयोग्य लड़कियों व लड़कों का परस्पर विवाह नहीं हो पाता अथवा कई बार बहुत देरी से बेमेल विवाह हो जाता है। कई बार तथाकथित मंगलीक दोष के दोषारोपण के फलस्वरूप लड़के या लड़की के माता-पिता जातक की वास्तविक जन्म पत्रिका या जन्म समय आदि को छिपाने का प्रयास भी करते है।
मंगलीक दोष के शुभ अशुभ प्रभाव का निर्णय करते समय मिलान से सम्बन्धी अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
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मंगलीक योग सदा अनिष्टकारी नहीं होता| आज के समय में ज्योतिष शास्त्र के लिए लोगों की रूचि और विश्वास तो बढ़ रहा है पर इस शास्त्र के वास्तविक उपयोग की ओर बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। आमतौर पर ज्योतिषी विवाह के योग्य वर/वधु के वर्ण, वश्य, तारा, राशिमैत्री, भकूट, अष्टकूट पर आधारित गुण मिलान के बाद दोनों की कुण्डलियों में मंगलीक-योग की ओर ध्यान देते हैं।
- दुसरे, सातवें और आठवें भाव में (मंगल के अतिरिक्त) अन्य शुभाशुभ ग्रहों की स्थिति और दृष्टि, इन्हीं भावों के भावेश तथा विवाह-सुख कारक चन्द्र, शुक्र और गुरु आदि ग्रहों की स्थिति, नवांश और चलित कुण्डली तथा अष्टक वर्ग में मंगल की शुभाशुभ स्थिति तथा दशा, अन्तर्दशा देखने के बाद ही मंगल या मंगलीक दोष सम्बन्धी अन्तिम निर्णय करना चाहिए।
- किसी जातक/जातिका की कुण्डली के लग्न, व्यय, चतुर्थ, और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों, तो स्त्री पति के लिए अनिष्टकारी तथा पति स्त्री के लिए अनिष्टकारी माना जाता है|
- इस तरह सिर्फ मंगल को ही नहीं बल्कि अन्य क्रूर और पाप ग्रहों जैसे - शनि, राहु, केतु, सूर्य, क्षीण चन्द्र आदि को भी न्यून या अधिक रूपेण वैवाहिक जीवन में बाधक माना गया है।
- कुण्डली में मंगल नीच, अस्त या शनि से दृष्ट, या भावेश आदि के कारण अशुभ हो, तो जातक का उग्र स्वभाव का, झगड़ालू, उतावला, स्त्री के साथ कटु सम्बन्ध, भाई-बन्धुओं से विरोध, रोगी, मिथ्याभिमानी, असन्तुष्ट, क्रोधी, दुराग्रही और आर्थिक दृष्टि से परेशान होता है। यह दुर्घटना, चोट आदि का भी कारक है।
- यदि कुण्डली में मंगल शुभ हो, तो जातक उत्साहशील, धैर्यवान, पराक्रमी, भाई-बन्धुओं के सुखों से युक्त, धन, भूमि-जायदाद, स्त्री एवं पुत्र-सन्तान आदि सुख और उच्च पद प्राप्ति आदि प्रतिष्ठाओं को प्राप्त करता है। कुछ राशियों में तो मंगल वैसे भी शुभ माना जाता है-जैसे मेष, वृश्चिक, मकर, सिंह, धनु और मीन । इसके अतिरिक्त कुण्डली में मंगल की केन्द्र-त्रिकोण में स्थिति होने से भी शुभ एवं योगकारक माना जाता है।
- मेष, कर्क, सिंह, धनु एवं मीन आदि लग्नों में भावेश के कारण ही मंगल को शुभ एवं योग कारक माना जाता है।
- शनि भौमोऽथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत् । तेष्वेव भवनेष्वेव भौमदोष विनाशकृत् ॥
वैदिक ज्योतिष में पहले भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दुसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में तीसरे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में चौथे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में पांचवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में सातवे भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में नवम भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में दसवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव का उद्देश्य और राशियों, ग्रहों और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
वैदिक ज्योतिष में बारहवें भाव का उदेश्य और राशियों, ग्रहों, और स्वामियों का फल अलग अलग भाव में
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